वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली के पांचवे घर को संतान भाव या सुत भाव भी कहा जाता है। यह भाव किसी जातक की कुंडली में उससे पैदा होने वाली संतान या संतान से प्राप्त होने वाले सुख को दर्शाता है। यह भाव किसी व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता, उसकी कल्पनाशीलता, उच्च ज्ञान और शिक्षा का भी कारक है।
जन्मकुंडली का पांचवा भाव किसी जातक के प्रेम व्यवहार, उसकी आध्यात्मिक और धार्मिक रुचियों और उसके पूर्व जन्मों के बारे में भी बताता है। यहां स्थित शुभ ग्रह जातक को आध्यात्मिक मार्ग में शिखर तक ले जाते हैं। शरीर के अंगों में यह भाव जिगर, पित्ताशय, अग्नाशय, तिल्ली, रीढ की हड्डी को दर्शाता है। महिलाओं की कुंडली में पंचम भाव प्रजनन अंगों का कारक है। आइए खुलासा डॉट इन मे जानते हैं कि पांचवे भाव में बैठे हुए शनिदेव जातक को कैसा फल देते हैं।
जन्मकुंडली के पांचवे भाव में स्थित शनि के फल
वैदिक ज्योतिष में माना जाता है कि पांचवे भाव में विराजमान शनि जातक को मिश्रित फल देते हैं। ऐसे जातकों को जीवन के सभी सुख सुविधा प्राप्त होती हैं और इनकी आयु लम्बी होती है। शनि की यह स्थिति जातक को अत्याधिक बुद्धिमान और विवेकपूर्ण बनाती है।
पांचवे भाव में स्थित शनि व्यक्ति को मनमौजी और चंचल तो बनाते हैं लेकिन ऐसे जातकों का धर्म की ओर बहुत अधिक झुकाव होता है। शनि पांचवे भाव में हो तो जातक जीवन भर धार्मिक कार्यों में संलग्न रहता है। शनि की यह स्थिति जातक को बहुत लम्बी उम्र प्रदान करने वाली भी बतायी जाती है।

कुंडली के पांचवे भाव में स्थित शनि के फल
कुंडली के पांचवे घर में स्थित शनि जातकों को जीवन पर्यंन्त शत्रुओं पर विजय दिलवाता है। ऐसे जातकों में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है जिससे इनके विरोधी इनके सामने ठहर ही नहीं पाते। शनि की यह स्थिति कई बार संतान प्राप्ति में विलंब का कारण भी बनती है।ऐसे जातकों को पहले किसी और की संतान गोद लेने के बाद ही अपनी संतान की प्राप्ति होती है। कई बार जातको को पहली संतान होने के बाद दूसरी संतान में होने में पांच, सात, नौ या बारह वर्ष भी लग जाते हैं।
वैदिक ज्योतिष में पंचम भाव में स्थित शनि के बारे में कहा गया है कि यह जातक को कुटिलता भी प्रदान करती है। जातक अपने कार्य को निकालने के लिए कुटिल से कुटिल युक्ति अपनाने में भी बाज नहीं आता। पंचम भाव के शनि के दुष्प्रभावों के बारे में कहा गया है कि यह जातक को कभी कभी नास्तिक भी बना देता है। ऐसा जातक धर्म से एकदम विमुख होकर नास्तिकों जैसा व्यवहार करने लगता है। इससे जातक की धन सम्पत्ति की हानि होने लगती है और समाज में उसकी मर्यादा धीरे धीरे घटने लगती है।