2007 में इजरायल, अमरीका और फ्रांस के सहयोग से बनी कथा फ़िल्म बैंडज़ विज़िट संगीत से उपजे प्रेम की एक ऐसी कहानी है जो हर धड़कते हुए दिल में कभी न कभी जरूर उमड़ती है. यह अलग बात है कि प्रेम कहानियों को फार्मूले की तरह अपनानेवाले हमारे अपने फिल्म उद्योग में ऐसी कहानी पर […]
sanjay joshi - बड़ी खबरें
पहले पहल जब सिनेमा बनना शुरू हुआ तो उसके दिखाने के तरीके भी गढ़े जा रहे थे.1932 में दुनिया का पहला फिल्म फेस्टिवल इटली के वेनिस शहर में आयोजित हुआ। सिनेमा को अकेले अपने लैपटॉप या डेस्कटॉप में घर में गूंजती कई आवाजों के बीच देखना , सिनेमा को एक सही हाल में पर्याप्त अँधेरे और अच्छे प्रोजक्शन के जरिये देखना और सिनेमा को […]
हिन्दुस्तान के इतने विशाल सिनेमा उद्योग द्वरा हर साल निर्मित की जा रही फीचर फिल्मों के बरक्स दस्तावेज़ी सिनेमा का संसार निर्माण की तुलना में बहुत छोटा है या यह कहना कि दोनों माध्यमों की तुलना ही बेकार है एकदम सटीक बात होगी. लेकिन फिर भी कुछ बात है जिसकी वजह से नया भारतीय दस्तावेज़ी […]
1980 के दशक में कई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ी फ़िल्मों का निर्माण हुआ. मंजीरा दत्ता निर्मित ‘बाबूलाल लाल भुइयां की क़ुरबानी’ इनमे से एक है. 1987 में निर्मित यह फ़िल्म धनबाद के मैलगोरा नामक कसबे में बाबूलाल नामक एक अति गरीब के अपने स्वाभिमान के खातिर शहीद हो जाने की कहानी है. बाबूलाल भुइयां की कहानी आज […]
आखिरकार 1895 में पेरिस के लुमिये भाइयों द्वारा आविष्कृत सिनेमा का माध्यम मूलत दृश्यों और ध्वनियों के मेल का ऐसा धोखा है जो अँधेरे में दिखाए जाने के बाद हर किसी को अपने सम्मोहन में कैद कर लेता है. इसी वजह से जब शुरू –शुरू में लोगों ने परदे पर चलती हुई रेलगाड़ी देखी तो […]
कुर्द फ़िल्मकार बहमन घोबादी की फ़िल्म ‘हाफ़ मून’ या ‘अधखिला चाँद’ ईरानी और इराकी नागरिकता के बीच फंसे कुर्द लोगो की त्रासदियों की कहानी है जिसमे संगीत सरहदों को तोड़ने की कोशिश करता है. ‘हाफ़ मून’ अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव में चल रहे बुजुर्ग संगीतकार मामू की कहानी है जिसका अंतिम सपना है अपने […]
दक्षिण भारत में रहकर फ़िल्म बनाने वाले और सिनेमा दिखाने वाले अमुधन आर पी बहुत जरुरी काम अपने कैमरे और सिनेमा के परदे के जरिये कर रहे हैं. उनके सिनेमा के विषय आम आदमी और उनका जीवन संघर्ष है. मदुराई के नगर निगम में काम करने वाली एक अधेड़ दलित सफाईकर्मी के जीवन पर बनी […]
1895 में जब पेरिस में पहली बार लुमिये भाइयों ने लोगों को चलती हुई तस्वीरों के नमूने के बतौर रेलगाड़ी की छवियों को लोगों को दिखाया तो उनमे से बहुत उसे असल मानकर डर गए. 1895 से अब तक सिनेमा द्वारा लोगो को चमकृत करने का सिलसिला निर्बाध गति से आगे बढ़ता जा रहा है. […]
इटली में 1901 में पैदा हुए फिल्मकार वित्तोरियो डी सिका यथार्थवादी सिनेमा के उस्ताद हैं. यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि वे फ़िल्मकारों के फिल्मकार हैं. खुद हमारे देश के तीन बड़े फ़िल्मकारों –सत्यजित राय, राजकपूर और बिमल राय, पर उनका सीधा प्रभाव पड़ा. राजकपूर तो डी सिका से इतना प्रभावित थे कि उनकी ‘शू […]
दीपा धनराज की भारत सरकार के परिवार नियोजन कार्यक्रम की कड़ी आलोचना करने वाली दस्तावेजी फिल्म समथिंग लाइक अ वार की शुरुआत में ही जब स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ जे एल मेहता लेप्रोस्कोपिक नसबंदी के बारे में बता रहे हैं तब बहुत कुशलता के साथ नवरोज कांट्रेक्टर का कैमरा नसबंदी हो रही औरत के जबड़े […]