म्यूचुअल फंड निवेश के मामले में कुछ ऐसे नाम एवं शब्दावलियां होती हैं जिनमें भिन्नता होते हुए भी कई वजहों से एकरूपता दिखती है। इसकी वजह से निवेशकों के लिए काफी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के तौर पर आप ग्रोथ फंड एवं ग्रोथ ऑप्शन को ही देखिए, इसमें नामकरण के स्तर पर कितनी समानता दिखती है। उसी तरह ज्यादातर निवेशक डिविडेंड एवं डिविडेंड यील्ड फंड के आधारभूत अंतर को समझ नहीं पाते एवं दोनों को एक ही जैसा मानते हैं। निवेशकों को इस शब्द के वास्तविक अर्थ एवं नामों के बीच के अंतर को ठीक से समझना होगा। आइए इस पहलू पर विस्तार से चर्चा करते हैं-
इक्विटी फंड्स में डिविडेंड एवं ग्रोथ ऑप्शन
म्यूचुअल फंड बाजार में इस समय कई प्रकार के फंड मौजूद हैं जिनमें काफी समानता दिखती है परंतु उनके बीच के अंतर को पता करने के लिए उनके एसेट क्लास (जहां निवेश किया जा रहा है) पर नजर रखी जा सकती है। मतलब ये कि इक्विटी ओरियेंटेड फंड, इक्विटीज में एवं डेट ओरिएंटेड फंड, डेट में ही अपने पैसै लगाते हैं। एक बार जब फंड विशेष का चुनाव कर लिया जाता है फिर उसके बाद इस बात की रूप-रेखा भी तैयार हो जाती है कि वह किस तरह से प्रदर्शन करेगा। फंड के अंतर्गत इस तरह के कई सब-ऑप्शन हैं जो ग्रोथ एवं डिविडेंड ऑप्शन के रूप में कमाई का प्रबंधन करते हैं।
इसका मतलब ये कि कुछ विशेष फंड जिसमें संपूर्ण निवेश किया गया है उसे पोर्टफोलियो में देखा जा सकता है। इसके अंतर्गत निवेशक को फंड से होने वाली कमाई का प्रबंधन कैसे होगा, इसे सुनिश्चित करने का विकल्प मिलता है। यह ग्रोथ के रूप में हो सकता है जहां फंड की कुल कमाई को संग्रहित किया जाता है। इस ग्रोथ की वजह से फंड के नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) में भी वृद्धि होती है। ग्रोथ ऑप्शन के अंतर्गत यदि निवेशक कमाई या आय प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें फंड से यूनिटों की आवश्यक संख्या को बेचकर उसमें से रकम निकालना होगा।
बात जब डिविडेंड की होती है तब निवेशक म्यूचुअल फंड को इसका अधिकार देता है कि वह डिविडेंड के रूप में आंशिक या संपूर्ण अदायगी करके आय संबंधी मसले से निपटे। यहां निवेशकों द्वारा डिविडेंड पेआउट प्राप्त किया जा सकेगा। इसके अंतर्गत उन्हें (निवेशक) अपने बैंक एकाउंट में कैश के रूप में डिविडेंड प्राप्त होगा। इतना ही नहीं डिविडेंड, डिविडेंड रीइंवेस्टमेंट रूट के जरिए भी प्राप्त किया जा सकता है जहां निवेशक को डिविडेंड के रूप में कुछ अतिरिक्त यूनिटें मिलेंगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब म्यूचुअल फंड को लगेगा कि सरप्लस अमाउंट मौजूद है तो वही डिविडेंड तय करेगा। इन सबके बीच निवेशकों को यह अधिकार भी मिलता है कि वे अपने निवेश को बेच कर अपने पैसे वापस प्राप्त कर सकते हैं।
डिविडेंड यील्ड फंड
अभी तक हमने डिविडेंड के बारे में बात की। आइए अब डिविडेंड यील्ड फंड के बारे में बात करते हैं। डिविडेंड यील्ड फंड, म्यूचुअल फंड स्कीम का प्रकार है जो कि फंड मैनेजमेंट की एक रणनीति पर आधारित है। डिविडेंड यील्ड फंड एक इक्विटी ओरिएंटेड फंड है जो स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कंपनियों में इक्विटी की खरीद करता है। हालांकि इस फंड के पोर्टफोलियो में विशेष प्रकार के कंपनियों को ही जगह मिल पाता है।
कौन सी कंपनी ऊंची डिविडेंड यील्ड देती है इसे फंड ही तय करता है एवं इसका निर्धारण कुछ कारकों पर निर्भर करता है। डिविडेंड यील्ड की गणना दरअसल कंपनी के वर्तमान शेयर प्राइस द्वारा प्रति शेयर घोषित डिविडेंड में भाग देकर की जाती है। यदि डिविडेंड यील्ड ऊंचा है तो इसका मतलब है कि संबंधित कंपनी अच्छा (डिविडेंड के रूप में ही) रिटर्न दे रही है। फंड, ऊंची डिविडेंड यील्ड को परिभाषित करता है एवं फंड मैनेजर सूची से वैसी कंपनियों का चुनाव करता है जो आवश्यक मानदंडों को पूरा करता हो। इससे यह सुनिश्चित होता है कि पोर्टफोलियो में हाई डिविडेंड यील्ड देने वाली कंपनियों को शामिल किया गया है। इसके अलावा यह भी उम्मीद की जाती है कि पोर्टफोलियो एक निश्चित मनोदशा के साथ व्यवहार करेगा।
अत: पोर्टफोलियो में चुने गए शेयरों के आधार पर डिविडेंड यील्ड फंड विशेष तरह का व्यवहार करता है। इस तरह के फंड कुछ निश्चित परिस्थितियों मसलन यदि बाजार की स्थिति अच्छी न हो या भ्रम व असुरक्षा का माहौल उत्पन्न हो गया तो, में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। हालांकि बाजार की मनोदशा जब सकारात्मक हो एवं यह अच्छा प्रदर्शन कर रहा हो तो ये कंपनियां (पोर्टफोलियो में शामिल) उम्मीद के मुताबिक डिविडेंड नहीं प्राप्त कर पातीं हैं। इसलिए डिविडेंड यील्ड की गणना करते समय इन परिस्थितियों पर भी नजर रखनी चाहिए।
दोनों का सम्मिश्रण
इस तरह की परिस्थितियां भी हो सकती है जहां डिविडेंड यील्ड फंड के पास भी डिविडेंड ऑप्शन हो। चूंकि यह ऑप्शन सभी प्रकार के फंड्स में उपलब्ध रहता है इसलिए इससे निवेशकों के मन में किसी तरह का भ्रम उत्पन्न नहीं होता।
दरअसल डिविडेंड यील्ड फंड उस एसेट को प्रदर्शित करता है जिसमें निवेश (स्कीम द्वारा) किया जाएगा एवं डिविडेंड ऑप्शन वह रूट होगा जिसके जरिए निवेशक सुनिश्चित कर सकेगा कि फंड द्वारा की जा रही कमाई उसे प्राप्त हो। इस पहलू पर काफी सावधानी पूर्वक ध्यान देने की जरूरत है ताकि निवेशक को अपने निवेश को लेकर (कहां निवेश किया जा रहा है) कोई संदेह न रहे।
एक और संदेह की स्थिति वहां उत्पन्न हो सकती है जहां कोई कखग (मान लें) ग्रोथ फंड हो एवं वहां ग्रोथ ऑप्शन भी हो। ऐसी परिस्थिति में भी पूरे मसले को ठीक से समझा जा सकता है। यहां निवेशक को सबसे पहले ग्रोथ फंड की प्रकृति पर नजर रखनी चाहिए। इससे यह पता चलेगा कि किस तरह के शेयरों को इस फंड के पोर्टफोलियो में जगह दी गई है। उसके बाद फंड के अंतर्गत चयनित सब-ऑप्शन पर भी नजर डालें। यह ग्रोथ या डिविडेंड ऑप्शन के रूप में हो सकता है।