भई, मैं तो आपको लूटूंगा। मुझे तो लूटने का लाइसेंस ( licence ) मिला हुआ है। आपको भरोसा नहीं होता न? ये देखिए सरकारी चिट्ठी (Government order)। और यदि आपको इतनी ही तकलीफ है तो कोर्ट जाइए। सरकार की इस चिट्ठी को चैलेंज कीजिए। यदि जीत जाते हैं तो हमसे दोबारा मिलिए। हम न्यायालय (Court) के फैसले का सम्मान करते हैं। आपकी जरूर सुनेंगे। आपको लूटना बंद कर देंगे। ऐसा लॉजिक आपने सुना है या नहीं? जरूर सुना होगा जी।
जब क्रेडिट कार्ड कंपनियां (Credit card companies) सौ फीसदी ब्याज वसूलने लगीं तो ग्राहकों ने सवाल किया। चालीस-पचास फीसदी तक तो चलता है पर सौ फीसदी? यह तो नहीं चलेगा। ग्राहकों (customers) ने क्रेडिट कार्ड कंपनी (Credit card companies) के यहां धावा बोला। क्रेडिट कार्ड कंपनी (Credit card companies) ने कहा कि उनके पास भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की चिट्ठी है जिसमें कहा गया है कि अपने लाभ की खातिर वह ग्राहक को जितना चाहे लूट सकते हैं, तब तक लूटते रह सकते हैं जब तक कि ग्राहक दिवालिया न हो जाए। क्रेडिट कार्ड कंपनियों ने ग्राहकों से कहा कि यदि उनको इस लूट से तकलीफ हो रही है तो कोर्ट से फैसला ले आएं। ग्राहक कंज्यूमर कोर्ट (consumer court) में गए। कंज्यूमर कोर्ट (consumer court) ने कहा कि ग्राहकों को लूटना गलत है। पर कंपनियों को तो लूटने की आदत लगी हुई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट (supreme court) में कहा कि आरबीआई (RBI) ने उन्हें लूटने का लाइसेंस दिया है इसलिए लूट रहे हैं। आरबीआई (RBI) ने मान लिया कि कंपनियां सही कह रही हैं। मामला रफा दफा हो गया। कंपनियों ने कहा कि जिन ग्राहकों को लुटना अच्छा न लग रहा हो वह क्रेडिट कार्ड न लें।
यह तो रही क्रेडिट कार्ड (Credit Card) की बात। बैंक (Bank) जिस गति से होम लोन की दरें बढ़ा देते हैं, उस पर किसकी निगरानी है? प्राइवेट बैंक (Private Bank) मार्जिन कमाने के चक्कर में दरें बढ़ाते हैं। सरकारी बैंक (Government Bank) भी ब्याज दर (Interest rate) बढ़ाने से बाज नहीं आते। सरकार चाहे तो सरकारी बैंंकों (Government Bank) से कह सकती है पर बैंकों की आमदनी में गिरावट से उसे मिलने वाला लाभांश कम हो जाएगा। इसलिए वह चुप रहती है। रिजर्व बैंक (RBI) समय-समय पर नसीहत देती है कि बैंकों को एफडी (Fixed deposit) की दरें बढ़ानी चाहिए और होम लोन (Home Loan) सस्ते करने चाहिए, ग्राहकों को लूटना अनैतिक है, वह बहुत अधिक मार्जिन कमा रहे हैं आदि। पर वह करती कुछ नहीं क्योंकि लाइसेंस उसी ने दे रखा है। इस लाइसेंस के मुताबिक बैंक (Bank) अपने व्यावसायिक हित के लिहाज से ब्याज दरें तय कर सकते हैं। जरा तेल कंपनियों की सोचिए।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार (International market) में क्रूड (crude oil price) की कीमतें १५ फीसदी तक गिर चुकी हैं। पर पेट्रोल की कीमतें जस की तस हैं। कंपनियां कह रही हैं कि उन्हें भी लूटने का लाइसेंस प्राप्त है। जब जब क्रूड की कीमतों (crude oil price) में बढ़ोतरी होगी तो वह पेट्रोल (Petrol) की कीमतें बढ़ाएंगी, पर जब क्रूड की कीमतें गिरेंगी तो पेट्रोल की कीमतें कम करने के लिए वह बाध्य नहीं हैं। सरकार से पूछिए तो बेशर्मी भरा जवाब मिलेगा। सरकार कहती है कि पेट्रोल की कीमतें तो कंपनियां तय करती हैं। इसमें सरकार कुछ नहीं कर सकती। गरज यह है कि यदि कीमतें कम करनी पड़ीं तो सरकार को मिलने वाला लाभांश कम हो जाएगा। यदि आपको नही पच रहा हो तो कोर्ट से फैसला ले कर आइए या पेट्रोल खरीदना बंद कर दीजिए।