पहले हृदय रोग रईसों की बीमारी माना जाता था, पर आजकल इसकी चपेट में तेजी से गरीब-बरोजगार लोग भी आने लगे हैं। बढ़ती बेरोजगारी और इससे उपजी असुरक्षा के परिणाम स्वरूप खासकर नौजवानों में मानसिक तनाव लगातार बढ़ रहा है जिसका खमियाजा उन्हें कम उम्र में ही हृदयरोगी बनकर भुगतना पड़ रहा है।
डॉक्टर मानते हैं कि चर्बी और मोटापा बढ़ने के कारण होने वाले हृदय रोग के लिए पर्याप्त शोध और इलाज हैं लेकिन तनाव से होने वाले इस रोग से बचाव एक चुनौती बन गया है।
भारत में हृदयरोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति इस रोग से पीड़ित है। चौंकाने वाले तथ्य यह है कि तीस से कम उम्र के लोगों की संख्या में भी हाल के वर्षों में बढ़त हुई है, और अगर यही हालात रहे तो आने वाले कुछ वर्षों में यह महामारी की शक्ल अख्तियार कर लेगा।
वैसे तो हृदयरोग के अनेक कारण होते हैं लेकिन ‘कोरोनरी हार्ट डिजीज’ हृदय रोग में आम हैं मुख्य रूप से यह हृदय की धमनियों में चर्बी जमा हो जाने के कारण होता है यह अमूमन 40 की उम्र के बाद होता है। लेकिन बच्चों में भी हृदयरोग की शिकायतें सामने आने लगी हैं। बच्चों में हृदयरोग होने के आनूवांशिक कारण होते हैं। इसके अलावा कम उम्र में हृदय रोगी बनने का मुख्य कारण मानसिक तनाव है। हृदयरोग का एक प्रमुख कारण मधुमेह है। मधुमेह में एक तो रोगी की हृदय की नली सिकुड़ जाती है दूसरे, ब्लडप्रेशर में अचानक कमी बढ़ोत्तरी उसे हृदयरोगी बना देता है।
महिलाओं में हृदयरोग की संभावना कम होती है क्योंकि मासिक धर्म के दौरान एक विशेष प्रकार का हार्मोन स्रावित होता है। इसलिए महिलाओं में हृदयरोग की समस्या अमूमन (मासिक धर्म बंद होने के बाद) यानी 40-45 वर्ष के बाद होती है। लेकिन अब महिलाएं कम उम्र में ही हृदयरोग की शिकार हो रही हैं। आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता को प्राथमिकता देने वाली कामकाजी महिलाओं में घर बाहर के तालमेल का तनाव और घरेलू महिलाओं में अकेलेपन से उपजा तनाव, अंततः उन्हें कम उम्र में हृदयरोगी बना देता है।
दरअसल, तनाव के कारण शरीर में तेजी से जैव-रसायन परिवर्तन होने लगते हैं। कुछ विशेष हार्मोन (जैसे एड्रीनेलीन) का स्राव होने से धमनियां सिकुड़ जाती हैं और ब्लडप्रेशर अचानक बहुत अधिक या बहुत कम हो जाता है। तनाव से होमोसिस्टीन का स्राव होता है। यह एक प्रकार अमीनो एसिड है जो हृदय की धमनियों के सिकुड़ने फैलने का मुख्य कारण है। बेहद उत्तेजना या उन्माद में ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है। लगातार तनाव धमनियों के फैलने-सिकुड़ने की क्षमता को खत्म कर देता है जिसका सीधा असर हृदय पर पड़ता है।
विगत कुछ दशकों में सामाजिक व आर्थिक स्थितियों में तेजी से हुए बदलाव ने लोगों की जीवन शैली को बहुत प्रभावित किया है। कामकाज के तौर तरीके बदले है। एक जगह बैठे रहना और दिमागी कसरत आजकल के पेशे की खासियत हो गयी है। सो बैठे-ठाले चर्बी भी बढ़ती है और तनाव भी। ऊपर से अनिश्चित जीवन शैली ने आहार और निद्रा के संतुलन को बिगाड़ दिया है। आजकल अनाप-शनाप भोजन से चर्बी बढ़ने और वक्त-बेवक्त निद्रा से अधूरी नींद की शिकायत आम हो गयी है जिसके कारण हृदयरोग तेजी से बढ़ रहा है। डॉक्टरों की नजर में खान-पान व जीवन शैली में एहतियात बरतने के सिवा और कोई चारा नहीं है।
हृदयरोगों से बचे रहने के लिए डाक्टरों की सलाह है कि मोटापे के शिकार लोगों को छोटी-मोटी दूरियों के लिए पैदल चलने की आदत डाल लेना चाहिए, भुनी हुई चीजें या घी, मक्खन की जगह वनस्पति तेल-खासकर सरसों का और देसी गाय के घी का सेवन करना चाहिए। भोजन में फल-सब्जी की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए क्योंकि इसमें कैरोटीन मिलता है। देशी गाय का घी और कैराटीन सबसे अच्छा ‘एन्टीआक्सीडेंट’ होता है जो शरीर में अनावश्यक तत्वों को जमा होने से रोकता है।
कम उम्र में हृदयरोगी होने से बचने के लिए तनाव मुक्त होना एक मात्र रास्ता है। इसके लिए डा. करोली योग-ध्यान को एक बेहतर माध्यम मानते है। डा. करोली के अनुसार, ‘रोजाना सुबह आधा घंटे का योग-ध्यान आपको दिन भर के लिए तनावमुक्त और चुस्त-दुरुस्त तो बनाए रखेगा ही, कम उम्र में हृदयरोगी होने से भी बचाएगा।