Baba harbhajan singh temple in sikkim
army man in duty after 48 years of his deathआज जहाँ राजनीति का मैदान दिल्ली बना हुआ है, और तरह तरह की बयानबाजी करके नेता अपनी देशभक्ति साबित करने की कोशिश करते रहते हैं वहीं दिल्ली से करीब सोलह सौ किलोमीटर दूर भारत के सिक्किम में स्थित नाथूला दर्रा के पास भारत चीन बाडॅर पर एक ऐसी हस्ती है जो देशभक्ति की मिसाल है।
जी हां ! हम बात कर रहे हैं बाबा हरभजन सिंह (Baba Harbhajan Singh) की। जिनका सिक्किम राज्य में नाथूला दर्रा से ठीक 10 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में तक़रीबन 13 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर बंकर जैसा दिखने वाला एक मंदिर स्थित है, जो की भारत-चीन बोर्डर के पास स्थित है।
मंदिर के अन्दर बाबा हरभजन सिंह के वो सभी साजो-सामान आज भी रखे हैं, जो भारतीय सैनिक होने के कारण एक फौजी के पास होते है । आपको बता दे कि आज भी इस जगह पर उनकी फौजी वर्दी व उनके जूते रखे हुए हैं तथा यहाँ उनकी मौजूदगी को आप आसानी से महसूस कर सकते है ।
यदि भारत-चीन बॉर्डर की सुरक्षा में तैनात भारतीय सैनिकों की बात पर गौर किया जाए तो आज भी बाबा हरभजन सिंह इस बॉर्डर की निगरानी कर रहे हैं और वहां तैनात सैनिकों को आने वाले खतरों के प्रति आगाह कर रहे है । आज भी कई लोग इस नाम से अनजान है, तो आज हम आपको बताते है इस देशभक्त हिंदुस्तान के पहरेदार के बारे में–
जिला गुजरांवाला (वर्तमान पाकिस्तान में) के सदराना गांव में 30 अगस्त 1946 को जन्मे हरभजन सिंह ने सन 1955 में अपनी मैट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात सन 1956 में अमृतसर में एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना की सिग्नल कोर में शामिल हो गए ।
मान्यतानुसार 30 जून, 1965 के दिन इन्हें कमीशन प्रदान कर 14 राजपूत रेजिमेंट में तैनात कर दिया गया था । वर्ष 1965 के होने वाले भारत-पाक युद्ध में भी इन्होने मुख्य भूमिका निभायी थी, जिसके बाद इनका स्थानांतरण 18 राजपूत रेजिमेंट के लिए कर दिया गया । इतना ही नहीं, यह भी मान्यता है कि भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट में 9 फरवरी 1966 को एक सिपाही के तौर पर इनकी भर्ती हुयी ।
वर्ष 1968, इनकी तैनाती 23वीं पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में थी । इसी दौरान 4 अक्टूबर 1968 को घोड़ों के काफिले को तुकु ला से डोंगचुई ले जाते समय सैनिक हरभजन सिंह का पैर फिसल गया और ये गहरी खाई में जा गिरे और उनकी मौत हो गई। इस वक़्त उनकी उम्र 22 वर्ष थी ।
बहुत ढुंढने के बावजूद वो नहीं मिले । कई दिन बीत गए । फिर एक दिन सैनिक प्रीतम सिंह, जो हरभजन सिंह के साथी थे, के सपने में वो आये तथा अपनी मृत्यु होने की जानकारी दी तथा उनका शरीर इस वक़्त कहाँ है इसकी जानकारी भी दी । इसके बाद यूनिट ने खोजबीन शुरू कर दी और थोड़ी सी मशकत के बाद उन्होंने हरभजन सिंह का पार्थिव शरीर ढूंढ निकाला । वहां के शरीर के साथ उनकी राइफल भी थी । जगह वहीँ थी जो सपने में प्रीतम सिंह ने देखी थी ।
ऐसा भी कहा जाता है कि बाबा हरभजन सिंह ने अपने साथी सैनिक से समाधि बनाने का अनुरोध भी किया था, जिसके चलते सेना के अधिकारियों ने छोक्या छो नामक स्थान पर उनकी समाधि का निर्माण करवाया था । 11 नवंबर 1982, इस जगह पर एक नए मंदिर का निर्माण करवाया गया ।

सिक्किम की राजधानी गंगटोक से लगभग 52 किमी की दूरी पर नाथुला और जेलेप्ला पास के बीच बाबा हरभजन सिंह मैमोरियल मंदिर का निर्माण किया गया है, जो कि 13,123 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जहाँ आज भी हरभजन सिंह के जूते और बाकी सैनिक का सामान रखा है । यहाँ तैनात सैनिक हमेशा इन सबकी देखभाल करते है अर्थात भारतीय जवान इस मंदिर की चौकीदारी करते हैं ।
ऐसी मान्यता है कि आज भी भारत-चीन बॉर्डर की निगरानी बाबा हरभजन की आत्मा कर रही है तथा उन्होंने ही भारतीय सैनिकों को चीन की घुसपैठ के बारे में सतर्क किया था ।
इतना ही नहीं, ये भी कहा जाता है कि आज भी भारतीय सेना के सजग सैनिक के रूप एतौर पर उनकी सेवाओं को जारी रखा हुआ था. कुछ साल पहले ही वह अपने पद से रिटायर हुए हैं. माना जाता है कि बाबा उस जगह की निगरानी आज भी करते है ।
एक अद्भुत बात यह भी है कि बतौर सैनिक बाबा को भी दो महीने का अवकाश दिया जाता है, जिसके चलते जुलूस के रूप में उनकी वर्दी, टोपी, जूते व अन्य सैन्य सामान को सैनिक गाड़ी में नाथुला से न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन तथा वहां से डिब्रूगढ़-अमृतसर एक्सप्रेस से जालंधर, पंजाब तक आने के बाद एक विशेष सैन्य गाड़ी से उनका सामान उनके गांव में लाया जाता है तथा अवकाश समाप्त होने के पश्चात उन्हें पुन: नाथूला के पास बने बंकर में तैनात कर दिया जाता है ।
उनकी देशभक्ति, जज्बे और साहस के चलते बाबा हरभजन सिंह को ‘नाथूला का हीरो’ की संज्ञा दी गयी है ।