कभी भी फसल पकते समय चूहों का आतंक इतना बढ़ जाता है कि इन को रोकने के लिए किए गए सारे इंतजाम धरे रह जाते हैं, चूहों की समस्या से निबटने के लिए समय रहते ही इंतजाम कर लेना चाहिए,
चूहों के एक जोड़ी आगे के नुकीले दांत होते हैं, जो रोजाना बढ़ते रहते हैं और साल भर में तकरीबन 12 से 15 सेंटीमीटर तक बढ़ जाते हैं। चूहे हमेशा अपने दांतों की घिसाई करते रहते हैं, नहीं तो वे बढ़ कर अंदर की तरफ मुड़ कर तालू को भेद सकती हैं। इस से बचने के लिए ही चूहे दांतों की घिसाई करते रहते हैं। इस आदत की वजह से चूहे सख्त से सख्त चीजों को काट डालते हैं।
चूहों में बच्चे पैदा करने की कूवत भी ज्यादा होती है। चूहों का एक जोड़ा एक साल में 8 सौ से लेकर 12 सौ तक बच्चों की फौज खड़ी कर सकता है, लेकिन इन का जीवन 1-2 साल से ज्यादा नहीं होता।
चूहे अपने वजन के 10 फीसदी के बराबर ही खाते हैं। पर बरबादी बहुत ज्यादा करते हैं। चूहों में छूने व सूंघने की कूवत बहुत ज्यादा पाई जाती है।
चूहों की ज्यादातर प्रजातियां रात में अपना काम करने वाली हैं, इसलिए किसान उन के द्वारा किए गए नुकसान को समझ ही नहीं पाते। कई बार तो ऐसा होता है कि चूहे खेतों में डाले बीजों को रात में ही चट कर जाते हैं और जब अंकुर नहीं फूटता, तो किसान खराब बीज का रोना रोते हैं। चूहे खड़ी फसलों को 6 से 10 फीसदी तक नुकसान पहुंचाते हैं।
ऊचूहे अच्छे तैराक भी होते हैं। वे पानी में खड़ी धान की फसल को भी खूब नुकसान पहुंचाते हैं। ये ऊपर चढ़ने में भी माहिर होते हैं, इसलिए कच्चे मकान से ले कर महानगरों की बहुमंजिला इमारतों में भी देखने को मिल ही जाते हैं। चूहों की कुछ प्रजातियां तो नारियल, कोको, सुपारी वगैरह की रोपण फसलों पर भी ही रहती हैं और उन को 50 से 50 फीसदी तक हानि पहुंचाती है।
सूखे इलाकों में चूहों द्वारा बाजरा और ज्वार को बहुत नुकसान होता है। सिंचाई वाले इलाकों में गेहूं, धान, गन्ना वगैरह सभी फसलों को ये नुकसान पहुंचाते हैं।
तिलहनी व दलहनी फसलों को भी चूहे खूब बरबाद करते हैं। चूहे फसल को बीज बोने से ले कर पकने तक और फिर भंडारण तक हर स्तर पर नुकसान पहुंचाते हैं।
चूहों की प्रजातियां:
चूहों की 5 ऐसी प्रजातियां हैं, जो फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं।
भारतीय जरबिलः
इसे मृग चूहा या टटेरा इंडिका भी कहते हैं। पहाड़ों को छोड़ कर यह सारे भारत में पाया जाता है। यही चूहा ‘प्लेग बेसिल्स’ जैसी महामारी का भंडार हुआ करता था, यह चूहा सभी तरह की फसलों, चारगाहों, पेड़ों वगैरह का नुकसान पहुंचाता है। साल भर बच्चे देने वाली यह नस्ल 1 बार में 1 से 10 बच्चे तक पैदा करती है।
छोटी धूसः
इसे लेसर बेंडीकोटा रेट या बेंडीकोटा बेगालेंसिस भी कहते हैं। इस नस्ल के चूहे सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं। यह प्रजाति पूरे भारत में मिल जाती है। यह प्रजाति गेहूं, धान, गन्ना, मूंगफली, रागी इत्यादि फसलों की तो नंबर वन की दुश्मन है।
खलिहानों, गोदामों और रिहायशी इलाकों में भी यह नस्ल खूब कहर बरपा है। खाने के अलावा अपने गहरे व लंबेचौड़े बिलों में यह नस्ल बड़ी मात्रा में अनाज स्टोर कर लेती है। यह समझदार प्रजाति अपने बिलों का मुंह मिट्टी से बंद रखती है। मिट्टी का एक ढेर इन के बिल के मुंह पर देखा जा सकता है। यह प्रजाति भी साल भर बच्चे देती है।
इंडियन डेजर्ट जरबिलः
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व गुजरात के सूखे इलाकों में पाई जाने वाली भारतीय मरुस्थलीय जरबिल या मेरियोनिस हरियानी एक ऐसी प्रजाति है, जो ज्यादा नमी और काली चिकनी मिट्टी वाले इलाकों में बिल बनाना पंसद करती है। यह घास के मैदानों, बंजर व पड़त जमीन में रहना पंसद करती है। इस का हमला खरीफ की फसलों और चरगाहों में होता है।
साफ्ट फर्ड फील्ड रेट:
नरम रोएं वाला मैदानी चूहा सिचिंत इलाकों का चूहा है। इस की 2 उप प्रजातियां भी हैं, रैट्स मेल्टाडा पेलिडियर और रैट्स मेल्डाटा। ये प्रजातियां चरागाहों में भी खूब पाई जाती हैं। जो सीधे बिल बनाती हैं। राजस्थान में यह मार्च से सितंबर तक बच्चे देने वाली नस्ल हैं, पर बाकी बचे भारत में यह नस्ल साल भर बच्चे जन्म देती रहती है।
फील्ड माइस:
मैदानी चुहिया या मस बुडुगा नाम की यह प्रजाति पूरे भारत में मिलती है और खेतों में पाई जाती है। तकरीबन सभी तरह की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली यह नस्ल छोटे-छोटे बिल बनाना पंसद करती है।
इसका प्रजननकाल सितंबर अक्तूबर व फरवरी मार्च के मध्य में होता है। यह एक बार में 6 से 13 बच्चे देती है।
चूहों की रोकथाम:
खड़ी फसलों में चूहों की रोकथाम करना थोड़ा मुश्किल भरा काम है। अगर यह काम फसल की बोआई से पहले कर लिया जाए, तो इस से काफी मदद मिल सकती है। चूहे खेतों में मेंड़ों पर बिल बना कर रहते हैं, इसलिए खेत की मेंड़ों की ऊंचाई व चौड़ाई कम से कम रखनी चाहिए। जिस से कि चूहे उस पर बिल न बना सकें, चूहें खरपतवार और पिछली फसल के कचरे में रहते हैं, इसलिए खरतपवार खत्म कर चूहों की तादाद में काफी कमी की जा सकती है।
जहर का इस्तेमाल कर के चूहों पर काबू पाया जा सकता है। फसल में जहर द्वारा चूहा नियंत्रण कम से कम 2 बार तो जरूर करना चाहिए। पहली बार बोआई से पहले व दूसरी बार फसल पकते समय चूहों की रोकथाम के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए।
आमतौर पर चूहे आसानी से जहर नहीं खाते, इसलिए जहर को खाने की चीजों में मिला कर चुग्गा बनाना पड़ता है, हो सके तो जहरीले चुग्गे से पहले चूहों को वही चुग्गा सादा खिलाया जाना चाहिए, ताकि उन को उस चुग्गे को खाने की आदत पड़ जाए।
चूहों को बाजरा, गेहू, ज्वार आदि के दाने खाने की आदत होत है, इसलिए इन अनाजों से ही चुग्गा बनाया जाना चाहिए।
उत्तर पश्चिमी भारत में पाए जाने वाले चूहे बाजरे के बीज खूब पसंद करते हैं। सादा चुग्गा बाजरे में मूंगफली या तिल का तेल मिला कर बनाया जा सकता है।
सादे चुग्गे को चूहों के ताजा बिलों में 10 ग्राम प्रति बिल के हिसाब से डालना चाहिए, दूसरे या तीसरे दिन इन्हीं बिलों में जिंक फास्फाइड मिले जहर का चुग्गा डालना चाहिए।
जहरीला चुग्गा बनाने के लिए 1 किलोग्राम बाजरे में 20-25 ग्राम मूंगफली का तेल मिला लें और इस पर 20 ग्राम जिंक फास्फाइड पाउडर बुरक दें।
जिंक फास्फाइड चुग्गे से 75 फीसदी तक चूहों पर काबू किया जा सकता है। बचे हुए चूहों की इसी चुग्गे से खत्म करना मुममिन नहीं है, क्योंकि बचे चूहे जहरीले चुग्गे के बारे में जान जाते हैं और वे उसे नहीं खाते, इसके लिए पहले सभी बिलों को बंद करें व दूसरे दिन खुले बिलों में ब्रोमोडियोलोन नामक दवा का चुग्गा डालें। यह चुग्गा बाजार में बना बनाया मिलता है।
जहरीला चुग्गा बनाते समय खाए पीएं नहीं। चुग्गा को हमेशा बिल के अंदर ही डालें, बाहर रहने पर अन्य पशु पक्षियों द्वारा खाए जाने से उन की जान जा सकती है।
जहरीले चुग्गे को बच्चों व पालतु पशुओं की पहुंच से दूर रखें। बच्चे हुए चुग्गे को जमीन में गहरा दबा दें।