वैसे तो सहजन अपने आप में एक पूरी फसल हैं, फिर भी इसे कृषि वानिकी के तौर पर अपना कर किसान एक साथ कई फायदे ले सकते हैं, यह लगातार मुनाफा देने वाली फसल है।
एग्रो फोरेस्ट्री में हमेशा ऐसे पेड़ों का चुनाव करें जिन से ज्यादा आमदनी हो, कुछ पेड़ ऐसे होते हैं जिस का हर हिस्सा जैसे जड़, तना, पत्ती, फूल और फल का अलग-अलग रोल और अलग मांग होती है। देखा गया है कि एक ही पेड़ का दवा, ईंधन, इमारती लकड़ी, पशु चारा और भोजन वगैरह में इस्तेमाल होता है।
सहजन उन्हीं पेड़ों में से एक है। इस का हर हिस्सा औषधीय गुणों से भरा होता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में मोरिंगा ओलिफेरा और आम बोलचाल में सेंजना कहते हैं।
सहजन बहुत काम का और जल्दी बढ़ने वाला कठोर पौधा है। इस में सूखा सहन करने की अच्छी कूवत होती है। सहजन पर सफेद फूल और पतली लंबी फलियां लगती हैं।
पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण इस के फल, फूल व पत्तियां तीनों, सब्जी के लिए अच्छी होती हैं। इन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम, फास्फोरस व आयरन अच्छी मात्रा में पाया जाता है। इस के पके हुए बीज से कीमती तेल मिलता है, जिस का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन, लुब्रीकेंट व इत्र बनाने में किया जाता है। सहजन के दाने में पौलीपेप्टाइड नामक तत्व पाया जाता है, जो खराब पानी को पीने लायक बनाता है, यह भारत में जंगली पौधे के तौर पर पाया जाता है।
सहजन की खासियत यह है कि यह हर तरह की मिट्टी में आसनी से उग जाता है। कछारी, बालू व दोमट बलुई मिट्टी तो इस की पैदावार के लिए ज्यादा बढ़िया मानी जाती है। जहां पाला पड़ता हो और पानी भरे रहने की समस्या हो, वहां यह नहीं पनपता है।
सहजन गरम और नम जलवायु में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है। इस के लिए सही तापमान 25-30 डिगरी सेंटीग्रेड होता है, जबकि यह अधिकतम 48 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान भी सहन कर सकता है।
इस की बोआई जुलाई में करनी चाहिए। समय-समय पर खाद व पानी का इस्तेमाल करने में सहजन की अच्छी बढ़वार होती है। 3 महीने तक पौधे को देखीााल की ज्यादा जरूरत होती है। उस के बाद यह अपने आप बढ़ने लगता है।
किसान इस की कारोबारी खेती वैज्ञानिक ढंग से करें तो पोषक तत्वों की पूर्ति के साथ कई बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं।
वैरायटीः
इस की वैरायटी को इस की शाखाओं और जीवन चक्र के आधार पर बांटा गया है।
कम व सीधी शाखाः
इस वैरायटी में 3 तरह की फलियां पाईं जाती हैं। छोटे आकार की फलियां (15-25 सेंटीमीटर), मध्यम आकार की फलियों (25-40 सेंटीमीटर) और लंबी फलियों (50-90 सेंटीमीटर) वाली किस्मों की खेती पूरे देश में की जाती है।
जीवन चक्र के आधार पर सहजन की किस्में इस तरह हैं।
एक साल का पौधाः
दक्षिण भारत में इस की खेती होती है। इस में पीकेएम-1 और पीकेएम-2 वगैरह किस्में आती हैं।
कई साला पौधाः
उत्तरी भारत में बहुवर्षीय किस्में उगाई जाती हैं। इन में चावाकाचैरी मूरिंगाई, जेम मूरिंगाई, काट्टू मूरिंगाई, कोडकाल मूरिंगाई, पाल मूरिंगाई, पूना मूरिगांई व याजफानम मूरिंगाई वगैरह किस्में शामिल हैं।
पौधे तैयार करनाः
बहुवर्षीय सहजन को पौध तने द्वारा तैयार की जाती है, जबकि एक साला किस्मों को पौध बीज से तैयार की जाती है, एक साला किस्मों की बोआई के लिए बीज 6 महीने से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए और बोआई से पहले बीज को 18-24 घंटे तक पानी में भिगोने से अंकुरण जल्दी और अच्छा होता है। रोपाई लायक पौधे 40 से 60 दिन में तैयार हो जाते हैं। पाॅलीथिन की थैलियों में उगाने से पौधे की बढ़वार जल्दी होती है।
बहुवर्षीय सहजन को कलम द्वारा लगाते हैं। कलम की लंबाई एक मीटर और मोटाई 5 से 10 संेटीमीटर होनी चाहिए। कलम को अप्रैल मई महीने में जमीन में गाड़ते हैं। उत्तर भारत में एक साला सहजन की बोआई का सही समय मध्य जून से अगस्त तक है।
रोपाईः
जब पौधा 25-30 सेंटीमीटर का हो जाए तब उस की रोपाई कर सकते हैं। रोपाई से पहले खेत में 50 ग50ग50 सेंटीमीअर के गड्ढे खोद कर हर गड्ढे में 4-5 किलो गोबर की सड़ी खाद, 10 ग्राम फ्यूराडान मिट्टी में मिला कर भर देते हैं। रोपाई के समय नाइट्रोजन की एक चैथाई, फास्फेट की पूरी मात्रा और पोटाश की आधी मात्रा मिट्टी में मिला कर रोपाई करनी चाहिए।
बहुवर्षीय सहजन की कलम को 4-5 मीटर की दूरी पर लगाते हैं। एक साला सहजन का फैलाव कम होता है, इसलिए इसे लगाने में कतार से कतार पौधे से पौधे की दूरी ढाई मीटर तक रखते हैं।
खाद व उर्वरकः
पौध रोपाई से पहले गड्ढों में 4-5 किलो गोबर की खाद, ढाई सौ ग्राम नाइट्रोजन, डेढ़ सौ ग्राम फास्फोरस और सौ ग्राम पोटाश प्रति पौधा इस्तेमाल करें। पौध रोपाई समय नाइट्रोजन की एक चैथाई मात्रा, फास्फोरस की पूरी मात्रा और पोटाश की आधी मात्रा डालते हैं। नाइट्रोजन और पोटाश की बची हुई मात्रा फूल आने से पहले फरवरी मार्च में व फलियों के विकास के समय देनी चाहिए।
सिंचाईः
सहजन सूखा को सहन करने वाला पौधा है, लेकिन उत्तरी भारत में पौध लगाने से ले कर अगले हीने तक सिंचाई की जरूरत पड़ती है। फूल आने के पहले और फलियों के समय सिंचाई करने से उपज पर अच्छा असर पड़ता है।
गरमियों में 10 दिन के अंतर पर और सर्दियों में 20 के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए।
पैदावारः
जुलाई अगस्त महीने में लगाए एक साला पौधों से अप्रैल मई में खाने लायक तैयार फलियां मिलती हैं। इन से कुछ फलियां तुड़ाई के 4-5 महीने बाद सितंबर अक्तूबर में फिर हासिल की जा सकती है।
बहुवर्षीय पौध की फलियां मार्च अप्रैल में तुड़ाई लायक हो जाती हैं, एक साला पौधों से 4-5 किलोग्राम प्रति पौधा या 50-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज ली जा सकती है।
बहुवर्षीय किस्मों में 20 से 30 किलोग्राम खाने लायक फलियां ली जा सकती हैं।
फसल सुरक्षाः
सहजन पर कीट और बीमारियों का हमला कम होता है।, लेकिन कभी-कभी इस पर कुछ कीटों और बीमारियों का हमला देखा गया है। सहजन पर फल मक्खी, माहूं और पत्ती की सूंडी हमला करती हैं।
इन की रोकथाम के लिए डाइक्लोरोफास 0.1 फीसदी या डाइमेथोयेट 0.2 फीसदी का छिड़काव करना चाहिए, नीम के बीज का 40 ग्राम चूर्ण प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से भी फायदा होता है।
इसे पत्ती धब्बा एंथ्रेकनोज और रतुआ बीमारियां नुकसान पहुंचाती हैं। इन की रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 या कार्बोडाजिम 0.2 फीसदी का 10-15 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए।
बेहद लाभयदक सहजनः
राष्ट्रीय परिवार व स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 1.5 से 4.5 साल की उम्र की 70 फीसदी महिलाएं और बच्चे एनिमिया यानी खून की कमी से पीड़ित हैं। इस के समाधान के लिए सहजन काफी लाभदायक होता है।
फलीः सहजन की फलियां फरवरी से मई तक लगती हैं, कच्ची फलियों व फूलों की सब्जी बना कर लोग बड़े चाव से खाते हैं।
जड़ः सहजन की जड़ का इस्तेमाल मसाले के तौर पर किया जाता है, जब इस का पौधा 2 फुट का हो जाए, तब उस की जड़ निकाल कर छाल को हटा लें और उसे मसाले के तौर पर इस्तेमाल करें। ध्यान रखें जड़ का जयादा इस्तेमाल कतई न करें, जड़ को त्वचा की बीमारियों के इलाज में भी इस्तेमाल किया जाता है।
बीजः इस के बीजों को पीस कर पानी में डाल कर उन्हें पानी साफ करने के काम में लाते हैं, तालाबों नदियों व कुओं में पानी को साफ करने के लिए इस के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है, इस का पाउडर पानी में घुली हुई गंदगी को हटाने में मदद करता हे।
बीजों में 36 फीसदी तेल होता है, जिस का इस्तेमाल शरीर व चेहरे पर लगाई जाने वाली क्रीम व मशीनों का तेल बनाने के लिए किया जाता है, बीज निकालने के बाद जो खली बचती है, वह खाद के तौर पर इस्तेमाल होती है।
तनाः सहजन का तना घर को फर्नीचर बनाने, लकड़ी के बाक्स व कागज बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है, इस की टहनियों से निकलने वाले रेशे से रस्सी बनाई जाती है, सहजन की टहनियों और तने से गोंद निकलता है, इस गोंद का इस्तेमाल रंगाई छपाई उद्योग व गोंद उद्योग के साथ दवा उद्योग में भी होता है।
सहजन के फूल, फल, पत्तियां, छाल व इस से बने तेल का इस्तेमाल कई तरह की घरेलू दवा बनाने में किया जाता है।