हवा, पानी की तरह प्लास्टिक भी हमारे जीवन का जरूरी हिस्सा बन गया है। देख तमाशा लकड़ी की तर्ज पर कहा जाए कि देख तमाशा प्लास्टिक का, तो कोई गलत बात नहीं होगी।
खेती की बात करें तो खेती किसान भी अब प्लास्टिक के बिना अधूरी भी न कहें तो इस की कामयाबी जरूर अधूरी हो जाती है।
प्लास्टिकल्चर शब्द खेती, बागवानी, सिंचाई और इन से जुड़े तमाम कामों में प्लास्टिक के इस्तेमाल की बात कहता है, इस में प्लास्टिक जैसे प्लास्टिक शीट, प्लास्टिक पाइप, नेट के साथ-साथ दूसरे तमाम तरह के सामानों का इस्तेमाल खेती में हो रहा है।
प्लास्टिकल्चर का इस्तेमाल कारोबारी रूप से खेती और इस से जुड़े कामधंधों में बड़े पैमाने पर हो रहा है। इन में नर्सरी बैग, गमले, स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक, मल्ंिचग, ग्रीनहाउस, लो टनल, छायादार जाल, पक्षी और कीट रोकने का जाल, ओला रोधक नेट, प्लास्टिक ट्रे, बाक्स, क्रेट, लीनो बैग वगैरह शामिल हैं। यहां तक कि खेती की मशीनरी, दवा और खाद में भी प्लास्टिक का एक बड़ा रोल है।
प्लास्टिकल्चर कई फायदे देता है और देखा जाए तो खेती में निवेश का एक खास घटक है जिस से नमी की बचत, पानी की बचत, उर्वरक और पोषक तत्वों का सही इस्तेमाल करने में मदद प्रदान करता है।
नर्सरी में प्लास्टिक
अच्छी पौध, कलमों व पौधों को उगाने के लिए एक अच्छी नर्सरी में प्लास्टिक बैग, गमले, प्लग ट्रे, बीज ट्रे, प्रोट्रे, स्पेयर, लटकने वाली टोकरी और डलिया का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है। इन से पौधे के रखरखाव और लाने और ले जाने में आसानी होती है। अब तो धान की नर्सरी भी प्लास्टिक की ट्रे या फिर चटाई पर तैयार की जा रही है।
तालाब में प्लास्टिक
नहर, तालाब और जलाशय में पानी रिसाव को रोकने के लिए प्लास्टिक की शीट को बहुत असरदार पाया गया है। इस से तालाब में पीने लायक और सिंचाई के पानी को खराब होने से बचाने में मदद मिलती है। साथ ही यह बारिश के पानी को इकट्ठा करने, मछली पालन, पशु पालन के लिए असरदार और किफायती तकनीक है। यह मिट्टी कटाव को भी रोकता है।
तालाब, नहर और जलाशय में प्लास्टिक शीट से लंबे समय तक पानी बना रहता है। इस से रिसाव में कमी आती है।
इस से पानी भराव की समस्या खत्म होती है और स्टोर किए पानी में जमीनी पानी से बढ़ने वाली क्षारीयता की रोकथाम होती है।
सिंचाई में प्लास्टिक
टपक सिंचाई तकनीक पूरी तरह प्लास्टिक से बनी तकनीक है। इस से पानी की बचत और फसल की पैदावार को बढ़ाने में मदद मिलती है।
ड्रीप इरिगेशन से 40 से 70 फीसदी पानी की बचत और फसल की क्वालिटी व मात्रा में इजाफा होता है। खरपतवार की रोकथाम होती है। साथ ही, मिट्टी कटाव में कमी और बीमारी की रोकथाम में मदद मिलती है।
छिड़काव सिंचाई तकनीक में पंप की मदद से ज्यादा दबाव से पानी पौधों के पत्तों पर छिड़का जाता है। इस तकनीक में पाइप में लगे एक नोजल से बारिश की तरह पानी की बौछार निकलती है।
इस तकनीक से 30 से 50 फीसदी पानी की बचत, मिट्टी कटाव और मिट्टी के ठोसपन में कमी होती है। जमीन को समतल करने की जरूरत नहीं होती। पानी का छिड़काव फसल के ऊपर होता है।
पलवार में प्लास्टिकः मिट्टी की नमी को महफूज करने और खरपतवार की रोकथाम के लिए प्लास्टिक शीट से पौधे के आसपास की मिट्टी को ढक देने और मिट्टी को सूरज की गरमी से उपचारित करना पलवार कहलाता है।
पलवार से मिट्टी की नमी महफूज रहती है। पौधे की बढ़ोत्तरी के लिए सही नमी और तापमान बना रहता है। खरपतवार में रोकथाम होती है। बारबार सिंचाई करने की जरूरत नहीं पड़ती और यह जमीन को कठोर होने से बचाती है।
ग्रीन हाउस में प्लास्टिकः आजकल फलसब्जी हर मौसम में मिलते हैं। बारहमासी खेती में ग्रीन हाउस का अहम रोल है। और ग्रीनहाउस प्लास्टिक के ही बने होते हैं।
ग्रीनहाउस या पौलीहाउस में पौधे की बढ़वार व विकास के लिए अच्छा माहौल मिलता है। इस में हम बेमौसमी फसलों को उगा सकते हैं। कीट व बीमारियों की रोकथाम होती है। यह तकनीक टिश्यू कल्चर से पौधों को तैयार करने में मदद करती है और फसलों की अगेती पौध तैयार हो जाती है।
लो टनल में प्लास्टिकः यह छोटे आकार का ढांचा होता है जो ग्रीनहाउस की तरह ही काम करता है। लो टनल कार्बन डाइआक्साइड को मुहैया करा कर प्रकाश संश्लेषण क्रिया बढ़ा कर उपज बढ़ाने में मददगार होता है। इस ढांचे से फसल भारी बरसात, तेज हवा व बर्फ से सुरक्षित रहती है। लो टनल सब्जियों की पौध तैयार करने में सहायता करता है।
फसल सुरक्षा में प्लास्टिकः नेट का इस्तेमाल सब्जी और फल के पौधों को तेज धूप, बरसात, ओले, तेज हवा, बर्फ या भारी बारिश से बचाव के लिए किया जाता है।
आजकल सफेद, काले, लाल, नीले, पीले और हरे रंग के शेडनेट मौजूद हैं। जिन का इस्तेमाल नर्सरी, ग्रीनहाउस, छत पर बगिया लगाने के लिए किया जाता है।
पौधों और फलों को कीट, पक्षियों पशुओं और खराब मौसम से महफूज रखने के लिए नेट का इस्तेमाल किया जाता है।
फूल और बेल वाले पौधों, औषधीय पौधो, सब्जी और मसाले वाली फसलों के पौधे तैयार करने के लिए यह बहुत फायदेमंद है। इस से गरमी के मौसम में पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। इस के अलावा दवा का छिड़काव करने वाली स्प्रे मशीनें भी प्लास्टिक से बनी होती हैं।
पानी निकासी में प्लास्टिकः पानी निकासी वह तकनीक है जिस से पौधे के पास से ज्यादा पानी को निकाला जाता है। इस में जमीनी सतह के नीचे प्लास्टिक पाइपों का इस्तेमाल किया जाता है।
इस से पानी भराव को रोकने के लिए और मिट्टी से ज्यादा पानी हटाने में मदद मिलती है। सही फसल पैदावार के लिए खेती जमीन का सुधार और बचाव करता है।
पैकिंग मंे प्लास्टिकः फसल को बाजार तक पहुंचाने में पैकिंग का अहम रोल है। पुरानी तकनीकों में लकड़ी की पेटियों और बोरियों का इस्तेमाल होताा है। इन में कई तरह की कमियां होती हैं, जिन में सामान को नुकसान होता है। प्लास्टिक का लचीलापन, हलका वजन, लागत कम, सफाई और सुरक्षा के कारण इस का पैकिंग, प्रोसेसिंग, स्टोरेज और परिवहन में अहम रोल है।
खेती उत्पादों के 30 फीसदी से ज्यादा हिस्से का नुकसान खेत और ग्राहक के बीच होता है। इस नुकसान को रोकने के लिए पैकेजिंग का खास योगदान होता है।
सब्सिडीः भारत सरकार प्लास्टिक कल्चर को लोकप्रिय बनाने के लिए किसानों को सब्सिडी देती है। यह सब्सिडी राज्यों के बागवानी, खेती निदेशालयों से दी जाती है।
बागवानी में प्लास्टिकल्चर के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय समिति कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के तहत प्लास्टिकल्चर योजना की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं।
प्लास्टिकल्चर से जुड़े साजोसामान के लिए इस पते पर संपर्क किया जा सकता है।
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