यह किसानों की बदहाली और कृषि वैज्ञानिकों की चिंता का स्लोगन है। कड़ाके की सर्दी में आलू पर पाला गिरने का खतरा क्या मंडराया, किसानों ने फसल को दारू पिलाना ही शुरू कर दिया।
किसानों को फिक्र इस बात की है कि उन की फसलों में पीलापन आ रहा है। कुछ इस की वजह ठंड है तो कुछ जमीन में पोषक तत्व की कमी। इसी पीलेपन को दूर करने के लिए अलीगढ़ आगरा और मथुरा के किसान फसल पर कीटनाशक के साथ शराब का भी छिड़काव कर रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बृज क्षेत्र के कुछ जिलों में आलू की शानदार फसल होती है। कई कंपनियां सीधे ही किसानों से आलू की फसल खरीद लेती हैं। पैदावार बढ़ाने के लिए किसान कुछ भी करगुजरने को तैयार रहते हैं। चाहे नैतिक हो, या फिर अनैतिक।
अलीगढ़ में इगलास तहसील के सैंकड़ों किसानों ने कुछ सालों में नया फंडा अख्तियार किया है। ये किसान आलू की फसल को पाला और दूसरी बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशक दवाओं के रूप में देशी शराब का धुआंधार छिड़काव करते हैं।
किसानों का मानना है कि शराब का एल्कोहल अच्छे कीटनाशक का काम करता है। इस से कुछ भले ही न हो, अल्कोहल के छिड़काव से आलू की फसल में पाला नहीं पड़ता और पैदावार भी बंपर होती है।
यह प्रयोग शुरूआत में तो कुछ किसानों ने किया, लेकिन इस की चर्चा जंगल में लगी आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई। अब तो हर दूसरा किसान मोटे मुनाफे के लिए यही कर रहा है। किसान खुद भी इसे कबूलने से नहीं हिचकिचाते।
इगलास के किसान सोनबीर सिंह कहते हैं कि मिट्टी में शराब का असर जानदार होता है। शराब का छिड़काव होने के बाद पाले और सर्दी से फसल खराब नहीं होती। पैदावार भी अच्छी होती हैं किसान जितेंद्र मानते हैं कि फसल में शराब का छिड़काव खराब है। इस का कुछ न कुछ बुरा असर जमीन पर भी होता है।
लेकिन, वे कहते हैं कि किसान को महंगी खाद खरीदनी पड़ती है। सिंचाई की लागत दिनोंदिन बढ़ रही है। डीजल के रेट आसमान छू रहे हैं। कर्ज तक ऊंचे दाम पर मिलता है। फिर किसान क्या करें? अच्छी पैदावार नहीं हुई तो हो गए बरबाद।
इसी वजह से किसानों ने नैतिकता को एक तरफ रख कर शराब का छिड़काव शुरू कर दिया है। किसान उमाशंकर और राजेश शर्मा का कहना है कि हाड कंपाने वाली ठंड से आलू की फसल पर खराब असर पड़ रहा है। उस के लिए ही वे शराब का छिड़काव कर रहे हैं।
वहीं, कृषि सुरक्षा पर्यवेक्षक बनवारी लाल शर्मा का कहना है कि किसानों से बड़ा वैज्ञानिक कोई नहीं है। उन्होंने पैदावार बढ़ाने के लिए पहले ढेरों उपाय खोज रखे थे। जब पैदावार घटने लगी तो रसायनिक खादों से कोई परहेज नहीं किया। खाद के धुंआधार इस्तेमाल का नुकसान यह हुआ कि पैदावार घटने लगी।
अब रासायनिक खाद न डालें तो फसल ही नहीं हो सकती। किसानों ने कमाई का नया दांव शराब पर लगाया है।
जानकारी की कमी के चलते वे फसल पर शराब का छिड़काव कर रहे हैं। इस से खेत की उर्वरा ताकत खत्म हो जाएगीं इस तरह पैदा किए गए आलू को खाने वाले भी बीमार पड़ सकते हैं।
किसानों को अगर आलू को सर्दी और पाले से बचाना है तो वे मैटलएग्जिव, रिडोमिल का स्प्रे करें, सल्फर का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
खतरनाक है यह गोरखधंधा
फसल पर देशी दारू का छिड़काव किया जाए, तो उस का खमियाजा लोगों को भुगतना ही पड़ेगा यह तो लाजिम है।
लेकिन तब क्या किया जाए, जब दारू के साथ आॅक्सीटोसन की भी खुराक आलू को दी जा रही है। इस से आलू नशीला होने के साथ-साथ जहरीला भी हो रहा है।
इस तरह की खेती उत्तर बंगाल के किसान कर रहे हैं। यह प्रयोग बंगाल की सीमा से सटे वे किसान कर रहे हैं, जो लीज पर जमीन ले कर सब्जी उगाने का काम करते हैं। अधिकतर वे किसान बांग्लादेशी बताए जाते हैं। इस प्रयोग में आलू देखने में भले ही चमकदार और आकार में बड़ा हो जाए, लेकिन इस का स्वाद बिगड़ जाता है।
आलू की खुदाई से 10 दिन पहले ही किसान एक बीघा फसल में 1-2 लीटर कच्ची शराब में आॅक्सीटोसिन मिला कर उस का छिड़काव करते हैं। इससे आलू का आकार काफी बड़ा हो जाता है। आलू बड़ा और चमकदार हो जाता है। वैसे आलू की फसल खोदने का वक्त कम से कम 90 दिन का है, लेकिन किसान 60 दिन में ही आलू खोद लेते हैं। इन दिनों में आलू पूरी तरह तैयार नहीं हो पाता इसलिए पौधों पर कच्ची शराब का छिड़काव किया जाता है।
कच्चीशराब के छिड़काव से 1हफ्ते में सामान्य से सवा गुना बढ़ जाता है। बाजार में इस की कीमत भी अच्छी मिलती है।
अल्कोहल और आॅक्सीटोसिन का इस्तेमाल पैदावार तो बढ़ाता है। लेकिन ऐसी सब्जियों का इस्तेमाल जीवन के लिए खतरनाक होता हैं, इससे लीवर और किडनी के लिए खतरा बढ़ जाता है। कच्ची शराब का छिड़काव करने से आलू का आकार एकदम बढ़ता है। आलू हरा भी रह जाता है। हरे आलू में क्लोरोफिल की मात्रा ज्यादा होती है। हरे आलू में सोलेनाइन तत्व की अधिकता हो जाती है यह जहरीला तत्व है। इस आलू के सेवन से जी मिचलाना, सिरदर्द, डायरिया, उल्टी जैसी बीमारी होने का खतरा होता है।