Movie review kaalakaandi in hindi
पिछले कुछ समय से सैफ अली खान का समय सही नहीं चल रहा है या यूं कहे कि वो फिल्मो के चयन में गलती कर रहे हैं | कई बार तो सैफ की फिल्म देखते हुए ऐसा लगता है कि जिस फिल्म के लिए सब ही कलाकारों ने मना कर दिया हो, उसके लिए सैफ ने हां कहा है | एक अरसे से एक अदद हिट के लिए तड़प रहे सैफ की यह फिल्म भी बेहद कमजोर है और इसे समय और पैसे दोनों की बर्बादी ही कहा जाएगा | ख़राब फिल्मो का लगातार चयन सैफ के करियर को डुबाने का काम कर रही है, वरना एक वो समय भी जब सैफ को बॉलीवुड का चौथा खान माना जाने लगा था |
‘डेल्ही बैली’ फेम अक्षत वर्मा ने फिल्म “कालाकांडी” की कहानी लिखी है, मगर इस बार वो चूक गए है | फिल्म में एक साथ तीन कहानियां चलती है, जो कि एक रात की कहानी है। मराठी में कालाकांडी का मतलब “चीजों का बुरी तरह गड़बड़ा जाना” होता है । फिल्म एक डार्क कॉमेडी है, जिसका अपना एक विशेष वर्ग होता है | फिल्म में तीन किरदार है जो अलग-अलग परिस्थितियों में फंसते और फिर इनसे निकलते है । शेयरमार्केट एक्सपर्ट रिलीन (सैफ) को जब पता चलता है कि उसे पेट का कैंसर है और अब वो सिर्फ छह महीने का मेहमान है तो रिलीन को महसूस होता है कि अब तक तो वो अपनी ज़िन्दगी नहीं जी पाया मगर अब वो इसे जियेगा |
रिलीन के भाई अंगद (अक्षय) की शादी है और अंगद शादी से पहले पुरानी गर्लफ्रेंड के साथ मस्ती के लिए निकलता है। इन दोनों कहानी के साथ साथ कुणाल-शोभिता की कहानी भी चलती रहती है। इन सबकी कहानी का झोल कम होने ही वाला होता है कि एक डॉन के लिए काम करने वाले विजय राज-दीपक डोबरियाल आ जाते है, हालाँकि फिल्म में यहाँ कुछ अच्छे दृश्य देखने को मिलते है | फिल्म जीवन-मृत्यु और कर्म के दर्शन को सामने लाने का प्रयास करती है मगर कमजोर कहानी और फिल्म पर पकड़ के चलते औंधे मुंह गिर जाती है।
सैफ का अभिनय अच्छा है मगर कमजोर फिल्म में वो अंधकारमय हो जाता है | बाकी कलाकार औसत होने के साथ साथ प्रभावहिन है । गीत-संगीत भी कमजोर है | फिल्म तकनीकी नजरिये से अच्छी है, मगर फिल्म की कहानी ऐसी है जो फिल्म पर कम और वेब सीरिज पर ज्यादा सूट करती है |
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