Daas dev movie review in hindi
ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब किसी ने देवदास को अपनी सोच के अनुरूप ढालना चाहा हो। याद कीजिये तो अभय देओल की देव डी तुरंत जेहन में आ जाएगी। सुधीर मिश्रा ने इस फिल्म में देव, पारो और चंद्रमुखी को राजनितिक रंगों में रंग कर पेश करने की कोशिश की है। फिल्म अच्छी होने के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर कमजोर नज़र आती है, जिसका कारण इसके साथ रिलीज हुयी एवेंजर्स है। हालाँकि फिल्म की शुरुआत आपको देवदास की कहानी लग सकती है परन्तु अंत आते आते आप इस फिल्म को गैंग्स ऑफ़ वासेपुर से जोड़कर देखने लग जाओगे।
उत्तर प्रदेश के एक रसूखदार राजनीतिक परिवार का उत्तराधिकारी देव प्रताप चौहान अपने बचपन की दोस्त पारो को पसंद करता है। देव के पिता विशंभर सिंह और चाचा अवधेश सिंह अपने क्षेत्र के बड़े नेता हैं तथा पारो के पिता के अच्छे दोस्त भी हैं । परन्तु कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब एक दुर्घटना में देव के पिता की मौत हो जाती है। अब सब यही चाहते है कि देव अपने पिता की जगह ले परन्तु देव नशे की लत को अपना जीवन बना लेता है । ऐसे वक़्त में देव की ज़िन्दगी में चांदनी की एंट्री होती है। फिल्म में एक के बाद एक कई चौकाने वाले खुलासे होते है।
ये साली ज़िन्दगी, हजारों ख्वाहिशे ऐसी और खोया खोया चाँद जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले इस बार भी जटिल मानवीय पहलुओं के चित्रण करने में सफल होते हैं । गंदगी से भरी राजनीतिक के बीच में प्रेम त्रिकोण दिखाना हर किसी के बस की बात नहीं है। हालाँकि फिल्म की पटकथा कही कही पर कमजोर नज़र आती है। फिल्म की रफ़्तार कही भी कम नहीं होती अत: आप उबने से बच जाते हैं और फिल्म का लुत्फ लेते हैं। फिल्म में ऋचा चड्डा, अदिति राव हैदरी और राहुल भट्ट अपनी भूमिका को सहजता के साथ कर जाते हैं। विनीत कुमार सिंह, विपिन शर्मा, सौरभ शुक्ला, अनुराग कश्यप और दिलीप ताहिल भी अपनी अपनी भूमिका में फिट है।
फिल्म के संवाद यादगार हैं। गीत-संगीत फिल्म के अनुकूल है। यदि डार्क सिनेमा आपकी पहली पसंद है तो यह फिल्म आपके लिए ही है ।