Rajkmuar Dialogue in Hindi: हिंदी सिने जगत (Hindi cinema jagat) में वैसे तो बहुत से कलाकार आए जिन्होंने अपनी दमदार अदाकारी के बल पर दर्शकों के दिलों पर राज किया लेकिन एक शख्स ऐसा भी था जो न सिर्फ दर्शकों के दिलों पर बल्कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री (Film Industry) पर एक राजकुमार (Rajkumar) की तरह छाया रहा। जिसने अपने सफेद पैंट, सफेद कोट और सफेद जूतों से बॉलवुड (Bollywood) को एक अलग ढंग के कपड़ों का स्टाइल दिया। वहीं उसकी संवाद अदायगी (Dialogue Delivery) के कारण लोगों के मन पर उसकी छाप बन गई। जी हां हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड के बेताज बादशाह (कुलभूषण पंडित) उर्फ राजकुमार की। वो अपने बॉलीवुड के बादशाह राजकुमार के मशहूर डायलॉग् (Rajkumar dialogue) के लिए हमेशा मशहूर रहे। खुलासा डॉट इन के मनोरंजन (Bollywood News) Section में हम आपके लिए लाएं हैं राजकुमार के मशहूर डायलॉग।
Top 42 Dialogues of Raj Kumar in Hindi | बॉलीवुड के किंग राज कुमार के 42 डायलॉग
पाकिस्तान (Pakistan) के बलूचिस्तान (Balochistan) में 8 अक्तूबर 1926 को जन्में राजकुमार ने स्नातक तक की पढ़ाई की। आपको जानकर हैरानी होगी बॉलीवुड के मशहूर अदाकार राजकुमार (Rajkumar) बॉलीवुड में आने से पहले माहिम थाने में सबइंस्पेक्टर के रूप में काम करते थे। बताया जाता है कि जब कुलभूषण पंडित उर्फ राजकुमार सबइंस्पेक्टर थे उसी दौरान एक रात एक सिपाही ने राजकुमार से कहा कि हुजूर आप रंग ढंग और कद काठी से किसी हीरों की तरह दिखते हैं अगर आप हीरों बन जाए तो आप लाखों दिलों पर राज कर सकते हैं। ये बात राजकुमार को जंच गई और उन्होंने पुलिस महकमे से इस्तीफा देकर अपने फिल्मी करियर की शुरूआत कर दी।
देखते ही देखते राजकुमार (Rajkumar) लाखों दिलों पर राज करने लगे। राजकुमार की एक्टिंग (Rajkumar Acting), स्टाइल और डॉयलाग डिलीवरी तो ऐसे थी कि दशकों बाद आज भी दर्शक उनके डॉयलाग को याद करते हैं। बॉलीवुड (Bollywood) में राजकुमार (Rajkumar) के बहुत से किस्से मशहूर थे, बताया जाता था कि अगर किसी फिल्म के डॉयलॉग राजकुमार को पंसद नहीं आते थे तो वे कैमरे के सामने ही डॉयलाग अपने मनमाकिफ बदल लेते थे, और क्या मजाल की निर्देशक उनसे कुछ बोल पाए। बहरहाल खुलासा डॉट इन में हम राजकुमार के ऐसे ही कुछ फेमस डॉयलाग आपके लिए लाएं है।
Top 42 Dialogues of Rajkumar

जब राजेश्वर दोस्ती निभाता है तो अफसाने लिक्खे जाते हैं.. और जब दुश्मनी करता है तो तारीख़ बन जाती है
– राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)

चिनॉय सेठ, जिनके अपने घर शीशे के हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते.
– राजा, वक्त (1965)

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ना तलवार की धार से, ना गोलियों की बौछार से.. बंदा डरता है तो सिर्फ परवर दिगार से.
– ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह, तिरंगा (1992)

जब ख़ून टपकता है तो जम जाता है, अपना निशान छोड़ जाता है, और चीख़-चीख़कर पुकारता है कि मेरा इंतक़ाम लो, मेरा इंतक़ाम लो.
– जेलर राणा प्रताप सिंह, इंसानियत का देवता (1993)

हम अपने कदमों की आहट से हवा का रुख़ बदल देते हैं.
– पृथ्वीराज, बेताज बादशाह (1994)

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जानी.. हम तुम्हे मारेंगे, और ज़रूर मारेंगे.. लेकिन वो बंदूक भी हमारी होगी, गोली भी हमारी होगी और वक़्त भी हमारा होगा.
– राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)

हम वो कलेक्टर नहीं जिनका फूंक मारकर तबादला किया जा सकता है. कलेक्टरी तो हम शौक़ से करते हैं, रोज़ी-रोटी के लिए नहीं.
– राजपाल चौहान, सूर्या (1989)

दिल्ली तक बात मशहूर है कि राजपाल चौहान के हाथ में तंबाकू का पाइप और जेब में इस्तीफा रहता है. जिस रोज़ इस कुर्सी पर बैठकर हम इंसाफ नहीं कर सकेंगे, उस रोज़ हम इस कुर्सी को छोड़ देंगे. समझ गए चौधरी!
– राजपाल चौहान, सूर्या (1989)

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दादा तो दुनिया में सिर्फ दो हैं. एक ऊपर वाला और दूसरे हम.
– राणा, मरते दम तक (1987)

हम तुम्हे वो मौत देंगे जो ना तो किसी कानून की किताब में लिखी होगी और ना ही कभी किसी मुजरिम ने सोची होगी.
– ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह, तिरंगा (1992)

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शेर को सांप और बिच्छू काटा नहीं करते.. दूर ही दूर से रेंगते हुए निकल जाते हैं.
– राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)

काश कि तुमने हमे आवाज दी होती तो हम मौत की नींद से भी उठकर चले आते।
-सौदागर

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इस दुनिया में तुम पहले और आखिरी बदनसीब कमीने होगे, जिसकी ना तो अर्थी उठेगी और ना किसी कंधे का सहारा. सीधे चिता जलेगी.
– राणा, मरते दम तक (1987)
ताक़त पर तमीज़ की लगाम जरूरी है. लेकिन इतनी नहीं कि बुज़दिली बन जाए.
– राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)

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बोटियां नोचने वाला गीदड़, गला फाड़ने से शेर नहीं बन जाता.
– राणा, मरते दम तक (1987)
हम आंखों से सुरमा नहीं चुराते, हम आंखें ही चुरा लेते हैं.
– ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह, तिरंगा (1992)

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बॉलीवुड के बेताज बादशाह राजुमार के कुछ और मशहूर डॉयलाग
जब राजेश्वर दोस्ती निभाता है तो अफसाने लिक्खे जाते हैं..
और जब दुश्मनी करता है तो तारीख़ बन जाती है
– राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)
जिसके दालान में चंदन का ताड़ होगा वहां तो सांपों का आना-जाना लगा ही रहेगा.
– पृथ्वीराज, बेताज बादशाह (1994)
चिनॉय सेठ, जिनके अपने घर शीशे के हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते.
– राजा, वक्त (1965)
बेशक मुझसे गलती हुई. मैं भूल ही गया था, इस घर के इंसानों को हर सांस के बाद दूसरी सांस के लिए भी आपसे इजाज़त लेना पड़ती है. और आपकी औलाद ख़ुदा की बनाई हुई ज़मीन पर नहीं चलती, आपकी हथेली पर रेंगती है.
– सलीम अहमद ख़ान, पाक़ीज़ा (1972)
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जब ख़ून टपकता है तो जम जाता है, अपना निशान छोड़ जाता है, और
चीख़-चीख़कर पुकारता है कि मेरा इंतक़ाम लो, मेरा इंतक़ाम लो.
– जेलर राणा प्रताप सिंह, इंसानियत का देवता (1993)
बिल्ली के दांत गिरे नहीं और चला शेर के मुंह में हाथ डालने. ये बद्तमीज हरकतें
अपने बाप के सामने घर के आंगन में करना, सड़कों पर नहीं.
– प्रोफेसर सतीश ख़ुराना, बुलंदी (1980)
हम अपने कदमों की आहट से हवा का रुख़ बदल देते हैं.
– पृथ्वीराज, बेताज बादशाह (1994)
जानी.. हम तुम्हे मारेंगे, और ज़रूर मारेंगे.. लेकिन वो बंदूक भी हमारी होगी,
गोली भी हमारी होगी और वक़्त भी हमारा होगा.
– राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)
महा सिंह, शायद तुम अंजाम पढ़ना भूल गए हो. लेकिन ये याद रहे कि इंसाफ के
जिन सौदागरों के भरम पर, तुम फर्ज़ का सौदा कर रहे हो, उनकी गर्दनें भी हमारे हाथों से दूर नहीं.
– जगमोहन आज़ाद, पुलिस पब्लिक (1990)
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हम वो कलेक्टर नहीं जिनका फूंक मारकर तबादला किया जा सकता है. कलेक्टरी तो हम शौक़ से करते हैं, रोज़ी-रोटी के लिए नहीं. दिल्ली तक बात मशहूर है कि राजपाल चौहान के हाथ में तंबाकू का पाइप और जेब में इस्तीफा रहता है. जिस रोज़ इस कुर्सी पर बैठकर हम इंसाफ नहीं कर सकेंगे, उस रोज़ हम इस कुर्सी को छोड़ देंगे. समझ गए चौधरी!
– राजपाल चौहान, सूर्या (1989)
याद रखो, जब विचार का दीप बुझ जाता है तो आचार अंधा हो जाता है और
हम अंधेरा फैलाने नहीं अंधेरा मिटाने आए हैं.
– साहब बहादुर राठौड़, गॉड एंड गन (1995)
हम कुत्तों से बात नहीं करते.
– राणा, मरते दम तक (1987)
हम तुम्हे वो मौत देंगे जो ना तो किसी कानून की किताब में लिखी होगी
और ना ही कभी किसी मुजरिम ने सोची होगी.
– ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह, तिरंगा (1992)
अगर सांप काटते ही पलट जाए, तो उसके ज़हर का असर होता है वरना नहीं.
हम सांप को काटने की इजाज़त तो दे सकते हैं लेकिन पलटने की इजाज़त नहीं देते परशुराम.
– पृथ्वीराज, बेताज बादशाह (1994)
# राजा के ग़म को किराए के रोने वालों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी चिनॉय साहब.
– राजा, वक्त (1965)
घर का पालतू कुत्ता भी जब कुर्सी पर बैठ जाता है तो उसे उठा दिया जाता है. इसलिए क्योंकि
कुर्सी उसके बैठने की जगह नहीं. सत्य सिंह की भी यही मिसाल है. आप साहेबान ज़रा इंतजार कीजिए.
– साहब बहादुर राठौड़, गॉड एंड गन (1995)
शेर को सांप और बिच्छू काटा नहीं करते..
दूर ही दूर से रेंगते हुए निकल जाते हैं.
– राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)
इस दुनिया में तुम पहले और आखिरी बदनसीब कमीने होगे, जिसकी ना तो
अर्थी उठेगी और ना किसी कंधे का सहारा. सीधे चिता जलेगी.
– राणा, मरते दम तक (1987)
और फिर तुमने सुना होगा तेजा कि जब सिर पर
बुरे दिन मंडराते हैं तो ज़बान लंबी हो जाती है.
– प्रोफेसर सतीश ख़ुराना, बुलंदी (1980)
अपना तो उसूल है. पहले मुलाकात, फिर बात, और फिर अगर जरूरत पड़े तो लात.
– ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह, तिरंगा (1992)
भवानी सिंह को बुज़दिल कोई कह नहीं सकता! आत्मा बह नहीं गई चंदन, आत्मा लौट आई है. और अब ऐसे मालूम होता है कि बुज़दिल हम पहले थे. बुज़दिली का वो चोला आज उतारकर हमने फेंक डाला. ये कौन सी बहादुरी है कि दिन के उजाले में निकले तो भेस बदल कर, सोओ तो बंदूकों का तकिया बनाकर. चंदन, न घर ना बार, हवा का एक मामूली सा झोंका, चौंका देता है और घबराकर ऐसे उठ बैठते हैं जैसे पुलिस की गोली थी. इन गुमराह खंडरों को छोड़कर, चल मेरे साथ, इंसानों की बस्ती में चंदन, चल.
– ठाकुर भवानी सिंह, धरम कांटा (1982)
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चलो यहां से ये किसी दलदल पर कोहरे से बनी हुई हवेली है जो
किसी को पनाह नहीं दे सकती. ये बड़ी ख़तरनाक जगह है.
– सलीम अहमद ख़ान, पाक़ीज़ा (1972)
ताक़त पर तमीज़ की लगाम जरूरी है. लेकिन इतनी नहीं कि बुज़दिली बन जाए.
– राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)
बोटियां नोचने वाला गीदड़, गला फाड़ने से शेर नहीं बन जाता.
– राणा, मरते दम तक (1987)
हम आंखों से सुरमा नहीं चुराते, हम आंखें ही चुरा लेते हैं.
– ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह, तिरंगा (1992)
हमने देखें हैं बहुत दुश्मनी करने वाले, वक्त की हर सांस से डरने वाले. जिसका हरम-ए-ख़ुदा,
कौन उसे मार सके, हम नहीं बम और बारूद से मरने वाले.
– साहब बहादुर राठौड़, गॉड एंड गन (1995)
ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं,
हाथ कट जाए तो ख़ून निकल आता है.
– राजा, वक्त (1965)
इरादा पैदा करो, इरादा. इरादे से आसमान का चांद भी
इंसान के कदमों में सजदा करता है.
– प्रोफेसर सतीश ख़ुराना, बुलंदी (1980)
कौवा ऊंचाई पर बैठने से कबूतर नहीं बन जाता मिनिस्टर साहब! ये क्या हैं
और क्या नहीं हैं ये तो वक्त ही दिखलाएगा.
– जगमोहन आज़ाद, पुलिस पब्लिक (1990)
ये तो शेर की गुफा है. यहां पर अगर तुमने करवट भी ली
तो समझो मौत को बुलावा दिया.
– राणा, मरते दम तक (1987)
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तुमने शायद वो कहावत नहीं सुनी महाकाल, कि जो दूसरों के लिए खड्डा खोदता है वो खुद ही उसमें गिरता है. और आज तक कभी नहीं सुना गया कि चूहों ने मिलकर शेर का शिकार किया हो. तुम हमारे सामने पहले भी चूहे थे और आज भी चूहे हो. चाहे वो कोर्ट का मैदान हो या मौत का जाल, जीत का टीका हमारे माथे ही लगा है हमेशा महाकाल. तुमने तो सिर्फ मौत के खड्डे खोदे हैं, जरा नजरें उठाओ और ऊपर देखो, हमने तुम्हारे लिए मौत के फरिश्ते बुला रखे हैं. जो तुम्हे उठाकर इन मौत के खड्डों में डाल देंगे और दफना देंगे.
– कृष्ण प्रसाद, जंग बाज़ (1989)
ना तलवार की धार से, ना गोलियों की बौछार से.. बंदा डरता है तो सिर्फ परवर दिगार से.
– ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह, तिरंगा (1992)
काश तुमने हमें आवाज़ दी होती.. तो हम मौत की नींद से उठकर चले आते.
– राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)
महा सिंह, शेर की खाल पहनकर आज तक कोई आदमी शेर नहीं बन सका.
और बहुत ही जल्द हम तुम्हारी ये शेर की खाल उतरवा लेंगे.
– जगमोहन आज़ाद, पुलिस पब्लिक (1990)
दादा तो दुनिया में सिर्फ दो हैं. एक ऊपर वाला और दूसरे हम.
– राणा, मरते दम तक (1987)
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औरों की ज़मीन खोदोगे तो उसमें से मट्टी और पत्थर मिलेंगे. और हमारी ज़मीन
खोदोगे तो उसमें से हमारे दुश्मनों के सिर मिलेंगे.
– पृथ्वीराज, बेताज बादशाह (1994)
जो भारी न हो.. वो दुश्मनी ही क्या.
– ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह, तिरंगा (1992)
मिनिस्टर साहब, गरम पानी से घर नहीं जलाए जाते.
हमारे इरादों से टकराओगे तो सर फोड़ लोगे.
– जगमोहन आज़ाद, पुलिस पब्लिक (1990)
बच्चे बहादुर सिंह, कृष्ण प्रसाद मौत की डायरी में एक बार जिसका नाम लिख देता है,
उसे यमराज भी नहीं मिटा सकता.
– कृष्ण प्रसाद, जंग बाज़ (1989)
आपके लिए मैं ज़हर को दूध की तरह पी सकता हूं, लेकिन अपने ख़ून में आपके लिए
दुश्मनी के कीड़े नहीं पाल सकता.
– समद ख़ान, राज तिलक (1984)
हुकम और फर्ज़ में हमेशा जंग होती रही है. याद रहे महा सिंह, इस मुल्क पर जहां बादशाहों ने हुकूमत की है, वहां ग़ुलामों ने भी की है. जहां बहादुरों ने हुकूमत की है, वहां भगौड़ों ने भी की है. जहां शरीफों ने की है, वहां चोर और लुटेरों ने भी की है.
– जगमोहन आज़ाद, पुलिस पब्लिक (1990)
राजस्थान में हमारी भी ज़मीनात हैं. और तुम्हारी हैसियत के जमींदार,
हर सुबह हमें सलाम करने, हमारी हवेली पर आते रहते हैं.
– राजपाल चौहान, सूर्या (1989)