बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा ख़ारिज की जा चुकी है याचिका
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एक बार पुनर्विचार हेतु उच्चतम न्यायालय ने मामला बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष भेजा
महामारी के दौरान कोरोना संक्रमित शवों को जलाये जाने के आदेश दिए गए थे
नई दिल्ली, 05 मई (एजेंसी)। कोरोना वायरस महामारी के चलते जान गवाने वाले मुस्लिमों के शव को कब्रिस्तान में दफन करने पर अस्थायी प्रतिबंध लगाये जाने संबंधी मामले को उच्चतम न्यायालय ने एक फिर से बॉम्बे उच्च न्यायालय को भेज दिया है। न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने प्रदीप गांधी की विशेष अनुमति याचिका यानी कि एसएलपी की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई की, जिसके बाद इस मामला को एक फिर से उच्च न्यायालय को भेजते हुए दो हफ्ते के अंदर सुनवाई पूरी करने के निर्देश भी दिए है।
बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा ख़ारिज की जा चुकी है याचिका
खंडपीठ ने कहा कि याचिका में की गयी मांग को नकारने का उच्च न्यायालय का आदेश अंतरिम था, इसलिए उच्च न्यायालय मौजूदा परिप्रेक्ष्य में याचिका पर दोबारा विचार करे। याचिकाकर्ता ने कोरोना संक्रमित शव को अपने आवासीय इलाके के आगे कब्रिस्तान में दफनाने पर अस्थायी रोक की मांग की है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गत 27 अप्रैल को यह याचिका खारिज कर दी थी, जिसे उन्होंने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया है कि ये कब्रिस्तान घनी आबादी वाले इलाके में हैं और यहां कोरोना संक्रमित शव दफनाने से इलाके में मिट्टी और पानी के संक्रमित होने का खतरा है, जिससे आसपास के लोग संक्रमित हो सकते हैं। इसलिए इन कब्रिस्तानों में ऐसे शव दफनाने पर तत्काल रोक लगाई जाये। इन शवों को ऐसे कब्रिस्तानों में दफनाने का निर्देश दिया जाये जो आबादी से दूर हों।
महामारी के दौरान कोरोना संक्रमित शवों को जलाये जाने के आदेश दिए गए थे
याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने 30 मार्च को एक सर्कुलर जारी कर कोरोना संक्रमण से हुई मौत के मामले में शव दफनाने पर रोक लगा दी थी। सर्कुलर में कहा गया था कि महामारी के दौरान कोरोना संक्रमित शवों को जलाया जाएगा, लेकिन कुछ ही दिन बाद नौ अप्रैल को सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर ऐसे शवों को दफनाने की इजाजत दे दी। सर्कुलर में 20 कब्रिस्तानों को ऐसे शवों को दफनाने के लिए चिह्नित कर दिया गया, उनमें बांद्रा (वेस्ट) के तीन कब्रिस्तान भी शामिल हैं। याचिकाकर्ता की रिहायशी कॉलोनी भी बांद्रा (वेस्ट) के कब्रगाह के सामने ही है। जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने भी प्रदीप गांधी बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में पक्षकार बनाने का न्यायालय से अनुरोध किया है। मुस्लिम संगठन ने प्रदीप गांधी की याचिका में यह कहते हुए पक्षकार बनने की अनुमति मांगी है कि मुसलमानों को शव दफनाने से प्रतिबंधित करना संविधान प्रदत्त धार्मिक आजादी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।