- जनता को जल्द तथा वहनीय न्याय मुहैया कराने की जरूरत पर बल दिया गया
- निचली अदालतों के आधारभूत ढांचे को सुधारने की भी मांग पर सभी दलों ने जोर दिया
- आम आदमी को ढंग से न्याय मिल सके इसलिए सरकार मुकदमों के लिए अच्छी नीति लेकर आना आवश्यक है
नई दिल्ली, 19 मार्च (एजेंसी)। बीते गुरुवार को राज्यसभा में लगभग सभी राजनितिक दलों के सदस्यों ने अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मुद्दों को लेकर चिंता जताते हुए जनता को जल्द तथा वहनीय न्याय मुहैया कराने की जरूरत पर बल दिया गया । इस दौरान निचली अदालतों के आधारभूत ढांचे को सुधारने की भी मांग पर सभी दलों ने जोर दिया । ये सदस्य विधि एवं न्याय मंत्रालय के कामकाज पर उच्च सदन में हुयी चर्चा में भाग ले रहे थे।
भाजपा के भूपेन्द्र यादव ने इस चर्चा की शुरूआत करते हुए कहा कि आम आदमी को ढंग से न्याय मिल सके इसलिए सरकार मुकदमों के लिए अच्छी नीति लेकर आना आवश्यक है । उनका ये भी कहना है कि अधिकतर मुकदमों में सरकार एक पक्ष है इसीलिए सरकार ने आम आदमी की न्याय तक पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से न्याय मित्र और ई पोर्टल जैसी शुरुवात की हैं। उन्होंने ये भी कहा कि आजादी के बाद देश में ऐसा पहली बार हुआ है जब उच्चतम न्यायालय ने अपनी वेबसाइट के जरिये अपने निर्णयों को देश की छह-सात भाषाओं में उपलब्ध कराने की पहल की हो । यादव ने अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मामलों को लेकर चिंता जतायी।
इतना ही नहीं एक देश, एक चुनाव पर अपने विचार व्यक्त करते हुए यादव ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय चुनावों के लिए अलग अलग मतदाता सूची होती है जिसके कारण मतदाताओं के नामों में दोहराव जैसी समस्या का होना आम बात होती है। अपनी बात पूरी करते हुए उन्होंने मतदाता सूची को आधार से जोड़ने का पक्ष सबके सामने रखा ।
जबकि कांग्रेस की अमी याज्ञनिक ने इस मंत्रालय के बजटीय आवंटन का पूरा उपयोग नहीं होने पर चिंता जताते हुए कहा कि कई अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए शौचालय तक नहीं हैं। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराधों से निपटने के लिए कानून बना दिए गए हैं परन्तु उनके लिए विशेष अदालतों का अभाव है।
बीजद के प्रसन्न आचार्य ने अदालतों में दशकों से मामलों के लंबित होने पर चिंता जतायी और कहा कि ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब आरोपी लंबे समय तक जेल में रहा लेकिन अंतत: लंबी सुनवाई के बाद उसे रिहा कर दिया गया। आचार्य ने अदालतों में बड़ी संख्या में रिक्तियों होने पर चिंता जतायी। उन्होंने कहा कि ओड़िशा सहित कई राज्यों में उच्च न्यायालयों की पीठें स्थापित किए जाने की मांग लंबे समय से हो रही है।
चर्चा में भाग लेते हुए अन्नाद्रमुक के एस आर बालासुब्रमण्यम ने भी अदालतों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अधिक बजटीय आवंटन किए जाने की मांग की।