Shiva Natraj Avtar according to Skandpuran in Hindi
धार्मिक पुराणोंनुसार के अनुसार जब सृष्टि की रचना हुयी तो ब्रह्मनाद से शिव (Shiva) प्रकट हुए तो उनके साथ सत, रज और तम गुणों का भी जन्म हुआ, जो शिव (Shiv) के तीन शूल यानी त्रिशूल कहलाए। मगर क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव (Bhagwan Shiv) दो तरह से तांडव नृत्य करते हैं। जब भगवान शिव क्रोधित अवस्था में होते है तो वो बिना डमरू के तांडव नृत्य करते हैं, जबकि दूसरे तांडव नृत्य के दौरान वो डमरू भी बजाते हैं तथा उस समय प्रकृति में आनंद की बारिश होती है । यहीं वो समय होता है जब शिव परम आनंद से परिपूर्ण होते हैं। मगर आपको बता दे कि जब भगवान शिव शांत समाधि में होते हैं तो वो नाद करते हैं। आपको ये भी बता दे कि ॐ की ध्वनि को ही नाद कहा जाता है तथा पुराणों के अनुसार ॐ से ही भगवान शिव का जन्म हुआ है। पढ़िए भगवान शंकर जी की आरती (Shiv Aarti in hindi)।

अब जानते है कि भगवान शिव (Bhagwan Shiv) ने क्यों धरा नटराज का रूप। स्कन्दपुराण के अनुसार एक बार वनों में रहने वाले साधुओं को अपने तपोबल पर अहंकार हो गया, जिसके चलते उन्होंने साधारण मनुष्य को तुच्छ समझना शुरू कर दिया। भगवान शिव को जब साधुओं के अहंकार की जानकारी मिली तो उन्होंने साधुओं के अहंकार को तोड़ने की ठान ली। भगवान शिव ने भिखारी का रूप धरा और वन में टहलना शुरू कर दिया। भगवान शंकर के सोलह सोमवार के व्रत (Solah Somvar vrat Kata in hindi) विस्तार से पढ़िए




जब भगवान शिव (Shiva) साधुओं के निवास स्थान के सामने से गुज़र रहे थे तो उन्होंने पाया कि वहां मौजूद साधु जीवों के निर्माण और श्रेष्ठ जीव पर चर्चा कर रहे थे तथा उनमे श्रेष्ठ होने की मानसिकता ने जन्म ले लिया था। बात इतनी बढ़ गयी थी कि साधुओं ने भगवान की पूजा न करने तक का फैसला ले लिया था। भिखारी बने भगवान शिव (Bhagwan Shiv) ने एक एक कर के साधुओं की बात का तर्क सहित खंडन करना शुरू कर दिया। क्रोधित साधुओं ने एक भिखारी द्वारा खुद की बातों का खंडन करते हुए उसे दण्डित करने का मन बना लिया। महाकाल के महामृत्युजंय मंत्र (Maha mrityunjaya mantra) के जाप से होती है हर मनोकामना पूरी
साधुओं ने मन्त्रों से दानव और कई ज़हरीले सापों का सर्जन किया, जिन्होंने ने भिखारी बने भगवान शिव (Bhagwan Shiva) की हत्या का प्रयास करने लगे। अत: भगवान शिव ने एक अनोखा रूप धारण कर नृत्य मुद्रा में दानव व साँपों का संहार कर दिया। यहीं कारण है कि नटराज की मूर्ति में भगवान शिव को साँपों में लिपटा हुआ दिखाया जाता है। जब साधुओं ने भगवान शिव का ऐसा रूप देखा तो उनका अहंकार पल में नाश हो गया। यहीं कारण है कि नटराजन को सर्जन और विनाश दोनों का प्रतीक माना जाता है।
हालाँकि भरत मुनि के नाट्यशास्त्र के अनुसार शिव का तांडव नटराज रूप का प्रतीक है अर्थात जब भगवान शिव तांडव (Shiv tandav) करते हैं तो उनका यह रूप नटराज कहलता है, जहाँ नट का अर्थ है कला और राज का अर्थ है राजा। यहाँ पर इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि नटराज रूप इस बात का सूचक भी है कि अज्ञानता को सिर्फ ज्ञान, संगीत और नृत्य से ही दूर किया जा सकता है। वर्तमान में शास्त्रीय नृत्य से संबंधित जिनती भी विद्याएं प्रचलित हैं, वो सभी तांडव नृत्य की ही देन हैं।
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