चेतन आनंद : आ गये रिश्तों का हम रंगीं दुशाला छोड़कर
Chetan anand Hindi Gazal: Aa gye rishto ka ham rangi dushala chhodkar
आ गये रिश्तों का हम रंगीं दुशाला छोड़कर,
अब कहां जाएंगे हम तेरा शिवाला छोड़कर।
कहकहे, सुख-चैन, सपने, नींद, आज़ादी के दिन,
क्या मिलेंगे ये तुम्हें सच का उजाला छोड़कर।
शहर में दिन-रात रोटी के लिए तरसा है वो,
जो कि गुस्से में गया घर से निवाला छोड़कर।
हम हैं उस दुनिया के वासी, हम वहीं पर जाएंगे,
एक दिन रंगीनियां, ये रंगशाला छोड़कर।
हाथ काटे, पांव काटे, फिर कहा- आज़ाद हो,
तुम कहीं जाओ मगर सांसों की माला छोड़कर।
एक मुद्दत बाद देखा आइना तो यूं लगा-
उम्र मकड़ी-सी गई चेहरे पे जाला छोड़कर।
घुलते-घुलते याद में उसकी मुझे ऐसा लगा,
मुझको खुशबू ने छुआ फूलों का पाला छोड़कर।
चेतन आनंद की अन्य हिंदी गजलें
- चेतन आनंद : फूल तितली झील झरने चाँद तारे रख दिए
- चेतन आनंद: झांके है कोई पलपल अहसास की नदी में
- चेतन आनंद: अहसास का फलक़ है, अल्फाज़ की ज़मीं है
- चेतन आनंद: हम तुम्हारे ग़ुलाम हो न सके
- चेतन आनंद : प्यार कब आगे बढ़ा तक़रार से रहकर अलग
- चेतन आनंद : आ गये रिश्तों का हम रंगीं दुशाला छोड़कर
- चेतन आनंद : हम नहीं शाख, न पत्ते ही, न फल जैसे हैं
- चेतन आनंद : आंगन में तेरा अक्सर दीवार खड़ी करना
- चेतन आनंद : हमारे हौसले अहसास की हद से बड़े होते
- चेतन आनंद : उजाले की हुई पत्थर सरीखी पीर को तोड़ें
- चेतन आनंद : ऐसा भी कोई तौर तरीका निकालिये
- चेतन आनंद : वक्त की सियासत के क्या अजब झमेले हैं
- चेतन आनंद : गुमनाम हर बशर की पहचान बनके जी
- चेतन आनंद : मुश्क़िल है, मुश्क़िलात की तह तक नहीं जाती
- चेतन आनंद : कभी रहे हम भीड़ में भइया, कभी रहे तन्हाई में
- चेतन आनंद : राहों से पूछ लेना, पत्थर से पूछ लेना
- चेतन आनंद : इन सियासतदानों के घर में भी ठोकर मारकर
- चेतन आनंद : पहले तो होते थे केवल काले, नीले, पीले दिन
- चेतन आनंद : अब तो बदल पुराना सोच
- चेतन आनंद : अजब अनहोनियां हैं फिर अंधेरों की अदालत में
- चेतन आनंद : आख़िर में बैठ ही गया तन्हाइयों के साथ
- चेतन आनंद : मेरी परवाज़ जब-जब भी कभी अम्बर में होती है
- चेतन आनंद : याद आते हैं हमें जब चंद चेहरे देरतक
- चेतन आनंद : खमोशियां ही ख़मोशियां हैं हमारे दिल में तुम्हारे दिल में
- चेतन आनंद: बनके आई जो दुल्हन उस खुशी के चर्चे हैं