Story about crab and tortoise friendship
बहुत पुरानी बात है । एक नदी के किनारे रहने वाले कछुए और केकड़े की दोस्ती हो गयी। दोनों घंटो-घंटो तक नदी के किनारे पर साथ रहते। कछुए को अपने दोस्त और उसकी दोस्ती पर बहुत नाज़ था । एक दिन कछुए ने नदी पार करने की इच्छा केकड़े पर जाहिर की, परन्तु केकड़े ने असमर्थता जताते हुए कहा कि नदी पार करना उसके बस में नहीं है। कछुए ने दोस्ती का फ़र्ज़ अदा करते हुए कहा कि नदी मैं पार करवाऊंगा, बस तुम मेरी कमर को कसकर पकडे रहना।
जैसा कि तय हुआ था तो दोनों नदी पार करने के लिए तैयार थे। कछुआ केकड़े को कमर पर बैठा कर नदी पार करने लगा। दोनों नदी पार कर ही रहे थे कि अचानक कछुए को लगा जैसे उसकी कमर पर कुछ चुभा हो, मगर उसने नज़रंदाज़ कर दिया। थोड़ी देर बाद फिर कछुए को वैसा ही लगा, जब उसने देखना चाहा तो पाया उसका दोस्त केकड़ा उसकी कमर पर डंक मार रहा है । परन्तु कछुए ने दोस्ती को सर्वोपरि रखा और शांत भाव से अपने दोस्त को नदी पार कराने पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। जबकि पूरे रास्ते में केकड़ा कई बार कछुए की कमर और गर्दन पर डंक मार चुका था ।
जब दोनो ने नदी पार कर ली तो कछुए ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की और डंक मारने का कारण पूछा । केकड़े ने कहा, “अरे भाई ! ये तो मेरी आदत (प्रवर्ति) है, भला मैं इसे कैसे छोड़ सकता हूँ।” केकड़े के मुंह से ऐसी बात सुन कछुए को समझ आ चुका था कि गलती केकड़े की नही है बल्कि खुद उसकी है ।
कभी कभी हम भी बिलकुल कछुए जैसा बर्ताव करते है, किसी पर भी अतिविश्वास करने लगते है, और केकड़े रूपी इंसान को अपनी पीठ पर बैठा लेते हैं जिसका परिणाम बहुत दुखदायी और हमारी सोच के विपरीत निकलता है । मित्र चुनें मगर अतिविश्वास कभी न करे, क्योंकि केकड़ा तो केकड़ा होता है, वो अपनी प्रवर्ति कभी नही छोड़ सकता ।